Stavan
Stavan
Aalochna Paath

आलोचना पाठ | Aalochna Paath

Rajendra Jain

Stotra

Listen Now
Listen Now

Lyrics of Aalochna Paath by Stavan.co

बंदों पाँचों परम-गुरु, चौबीसों जिनराज।

करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरन के काज ॥


सुनिए, जिन अरज हमारी, हम दोष किए अति भारी।

तिनकी अब निवृत्ति काज, तुम सरन लही जिनराज ॥


इक बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित सहित जे जीवा।

तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदई ह्वै घात विचारी ॥


समारंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ।

कृत कारित मोदन करिकै, क्रोधादि चतुष्ट्य धरिकै॥


शत आठ जु इमि भेदन तै, अघ कीने परिछेदन तै।

तिनकी कहुँ कोलौं कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी॥


विपरीत एकांत विनय के, संशय अज्ञान कुनयके।

वश होय घोर अघ कीने, वचतै नहिं जात कहीने॥


कुगुरुनकी सेवा कीनी, केवल अदयाकरि भीनी।

याविधि मिथ्यात भ्रमायो, चहुँगति मधि दोष उपायो॥


हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, पर-वनितासों दृग जोरी।

आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो॥


सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषय-सेवनको।

बहु करम किए मनमाने, कछु न्याय-अन्याय न जाने॥


फल पंच उदंबर खाये, मधु मांस मद्य चित्त चाये।

नहिं अष्ट मूलगुण धारे, विषयन सेये दुखकारे॥


दुइवीस अभख जिन गाये, सो भी निस दिन भुँजाये।

कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों त्यों करि उदर भरायौ॥


अनंतानु जु बंधी जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो।

संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश मुनिये॥


परिहास अरति रति शोग, भय ग्लानि तिवेद संजोग।

पनवीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम॥


निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई।

फिर जागि विषय-वन भायो, नानाविध विष-फल खायो॥


आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा।

बिन देखी धरी उठाई, बिन सोधी बसत जु खाई॥


तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकल्प उपजायो।

कुछ सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्या मति छाय गई है॥


मरजादा तुम ढिंग लीनी, ताहूँमें दोष जु कीनी।

भिन-भिन अब कैसे कहिये, तुम खानविषै सब पइये॥


हा हा! मैं दुठ अपराधी, त्रस-जीवन-राशि विराधी।

थावर की जतन ना कीनी, उरमें करुना नहिं लीनी॥


पृथ्वी बहु खोद कराई, महलादिक जागाँ चिनाई।

पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो, पंखातै पवन बिलोल्यो॥


हा हा! मैं अदयाचारी, बहु हरितकाय जु विदारी।

तामधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि आनंदा॥


हा हा! मैं परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई।

ता मधि जे जीव जु आये, ते हूँ परलोक सिधाये॥


बींध्यो अन राति पिसायो, ईंधन बिन सोधि जलायो।

झाडू ले जागाँ बुहारी, चिवंटा आदिक जीव बिदारी॥


जल छानी जिवानी कीनी, सो हू पुनि डार जु दीनी।

नहिं जल-थानक पहुँचाई, किरिया विन पाप उपाई॥


जल मल मोरिन गिरवायौ, कृमि-कुल बहु घात करायौ।

नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव मराये॥


अन्नादिक शोध कराई, तामे जु जीव निसराई।

तिनका नहिं जतन कराया, गलियारे धूप डराया॥


पुनि द्रव्य कमावन काजै, बहु आरंभ हिंसा साजै।

किये तिसनावश अघ भारी, करुना नहिं रंच विचारी॥


इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने भगवंता।

संतति चिरकाल उपाई, बानी तैं कहिय न जाई॥


ताको जु उदय अब आयो, नानाविधि मोहि सतायो।

फल भुँजत जिय दु:ख पावै, वचतै कैसे करि गावै॥


तुम जानत केवलज्ञानी, दु:ख दूर करो शिवथानी।

हम तो तुम शरण लही है, जिन तारन विरद सही है॥


जो गाँवपति इक होवै, सो भी दुखिया दु:ख खोवै।

तुम तीन भुवन के स्वामी, दु:ख मेटहु अंतरजामी॥


द्रोपदि को चीर बढ़ायो, सीताप्रति कमल रचायो।

अंजन से किये अकामी, दु:ख मेटहु अंतरजामी।


मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनो विरद निम्हारो।

सब दोषरहित करि स्वामी, दु:ख मेटहु अंतरजामी॥


इंद्रादिक पद नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊँ।

रागादिक दोष हरीजै, परमातम निज-पद दीजै॥


दोषरहित जिन देवजी, निजपद दीज्यो मोय।

सब जीवन को सुख बढ़ै, आनंद मंगल होय॥


अनुभव मानिक पारखी, ‘जौहरि’ आप जिनंद।

यही वर मोहि दीजिए, चरण-सरण आनंद ॥

© Yuki Audio

Listen to Aalochna Paath now!

Over 10k people are enjoying background music and other features offered by Stavan. Try them now!

Similar Songs
Central Circle

Contribute to the biggest Jain's music catalog

Over 10k people from around the world contribute to creating the largest catalog of lyrics ever. How cool is that?

Charity Event 1Charity Event 2Charity Event 3Charity Event 3

दान करे (Donate now)

हम पूजा, आरती, जीव दया, मंदिर निर्माण, एवं जरूरतमंदो को समय समय पर दान करते ह। आप हमसे जुड़कर इसका हिस्सा बन सकते ह।