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Adhyatma Sajjay (Jinji Hu Re Sutiti)

अध्यात्म सज्जाय (जिनजी हु रे सुतिती) | Adhyatma Sajjay (Jinji Hu Re Sutiti)

Sarvangi Savani

Paryushan Sajjay | Sajjay

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Lyrics of Adhyatma Sajjay (Jinji Hu Re Sutiti) by Stavan.co

जिनजी हूं रे सूतीती आत्म महेल में,

मारो जीव छे नानेरुं बाळ रे अरिहंतजी रे,

हूं रे समरूं त्यारे आवजो जिनजी हूं रे...


पुण्य योगे मनुष्य भव पामीयो,

मुरख समजे नहीं मतिहिन रे. अरिहंतजी रे....


मारी कायावाडी लागे कारमी,

एने विणसंता लागे नहीं वार रे. अरिहंतजी रे...


मारा कान कटुका बहु करे,

पछी नहीं रे संभळाय श्रुत सिद्धांत रे. अरिहंतजी रे...


मारी आंख कटुका बहु करे,

पछी नहीं रे निरखाय प्रभुजीनी मुख रे. अरिहंतजी रे...


मारो कंठ खराटाणे ध्रजशे,

पछी नहीं रे रहे आ घटमाळ रे. अरिहंतजी रे...


मारो हाथ खराटाणे ध्रूजशे,

पछी नहीं देवाय सुपात्रदान रे. अरिहंतजी रे...


मारा पग खराटाणे ध्रूजशे,

पछी नहीं रे जवाय उपाश्रय माहि रे. अरिहंतजी रे...


मारी काया छे कांचनी कूपनी,

ए तो पलमां जशे विखराय रे. अरिहंतजी रे...


प्रभुजी केवलज्ञाने देखजो,

मुज नोंधाराना आधार रे. अरिहंतजी रे..


एवी हिरविजयजीनी विनंती,

प्रभु अंत समये रहेजो मारी पास रे. अरिहंतजी रे...

© Gyan Disha

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