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Dada Gurudev Ektisa

दादा गुरुदेव इकतीसा | Dada Gurudev Ektisa

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Lyrics of Dada Gurudev Ektisa by Stavan.co

श्री गुरुदेव दयाल को, मन में ध्यान लगाए,

अष्टसिद्धि नवनिधि मिले, मनवांछित फल पाए


श्री गुरु चरण शरण में आयो, देख दरश मन अति सुख पायो

दत्त नाम दुःख भंजन हारा, बिजली पात्र तले धरनारा


उपशम रस का कंद कहावे, जो सुमिरे फल निश्चय पावे

दत्त संपत्ति दातार दयालु, निज भक्तन के हैं प्रतिपालु


बावन वीर किए वश भारी, तुम साहिब जग में जयकारी

जोगणी चौंसठ वश कर लीनी, विद्या पोथी प्रकट कीनी


पांच पीर साधे बल कारी, पंच नदी पंजाब मजारी

अंधो की आंखें तुम खोली, गूंगों को दे दीनी बोली


गुरु वल्लभ के पाठ विराजो, सूरिन में सूरज सम साज़ो

जग में नाम तुम्हारो कहिए, परतिख सुर तरु सम सुख लहिये


इष्ट देव मेरे गुरुदेवा, गुणी जन मुनि जन करते सेवा

तुम सम और देव नहीं कोई, जो मेरे हित कारक होई


तुम हो सुर तरु वाँछित दाता, मैं निशदिन तुम्हरे गुण गाता

पार ब्रह्म गुरु हो परमेश्वर, अलख निरंजन तुम जगदीश्वर


तुम गुरु नाम सदा सुख दाता, जपत पाप कोटि कट जाता

कृपा तुम्हारी जिन पर होई, दुःख कष्ट नहीं पावे सोई


अभय दान दाता सुखकारी, परमातम पूरण ब्रह्मचारी

महा शक्ति बल बुद्धि विधाता, मैं नित उठ गुरु तुम्हें मनाता


तुम्हारी महिमा है अति भारी, टूटी नाव नई कर डारी

देश देश में थंभ तुम्हारा, संग सकल के हो रखवाला


सर्व सिद्धि निधि मंगल दाता, देवपरी सब शीश नमाता

सोमवार पूनम सुखकारी, गुरु दर्शन आवे नर नारी


गुरु छलने को किया विचारा, श्राविका रूप जोगणी धारा

कीली उज्जयनी मझधारा, गुरु गुण अगणित किया विचारा


हो प्रसन्न दीने वरदाना, सात जो पसरे महि दरम्याना

युग प्रधान पद जनहित कारा, अंबड मान चूर्ण कर डारा


माता अंबिका प्रकट भवानी, मंत्र कलाधारी गुरु ज्ञानी

मुग़ल पूत को तुरत जिलाया, लाखों जन को जैन बनाया


दिल्ली में पतशाह बुलावे, गुरु अहिंसा ध्वज फहरावे

भादो चौदस स्वर्ग सिधारे, सेवक जन के संकट टारे


पूजे दिल्ली में जो ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे

ऐसे दादा साहब मेरे, हम चाकर चरणन के चेरे


निशदिन भैरु गोरे काले, हाजिर हुकुम खड़े रखवाले

कुशल करण लीनो अवतारा, सतगुरु मेरे सानिध कारा


डूबती जहाज भक्त की तारी, पंखी रूप धर्यो हितकारी

संग अचंभा मन में लावे, गुरु तब शुभ व्याख्यान सुनावे


गुरु वाणी सुन सब हरखावे, गुरु भव तारण तरण कहावे

समय सुंदर की पंच नदी में, फट गई जहाज नई की छिण में


अब है सदगुरु मेरी बारी, मुझे सम पतित ना और भिखारी

श्री जिन चंद्र सूरी महाराजा, चौरासी गच्छ के सिर ताजा


अकबर को अभक्ष्य छुड़ायो, अमावस को चांद उगायो

भट्टारक पद नाम धरावे, जय जय जय जय गुणी जन गावे


लक्ष्मी लीला करती आवे, भूखा भोजन आन खिलावे

प्यासे भक्त को नीर पिलावे, जल धर उण वेला ले आवे


अमृत जैसा जल बरसावे, कभी काल नहीं पड़ने पावे

अन धन से भरपूर बनावे, पुत्र-पौत्र बहू संपत्ति पावे


चामर युगल ढुले सुखकारी, छत्र किरणिया शोभा भारी

राजा राणा शीश नमावे, देव परी सब ही गुण गावे


पूरब पश्चिम दक्षिण तांईं, उत्तर सर्व दिशा के माहीं

ज्योति जागती सदा तुम्हारी, कल्पतरु सतगुरु गण धारी


श्री विजय इंद्र सूरीश्वर राजे, छड़ी दार सेवक संघ साजे

जो यह गुरु इकतीसा गावे, सुंदर लक्ष्मी लीला पावे


जो यह पाठ करे चित लाई, सतगुरु उनके सदा सहाई

वार एक सौ आठ जो गावे, राजदंड बंधन कट जावे


संवत आठ दोय हज्जारा, आसो तेरस शुक्करवारा

शुभ मुहूर्त वर सिंह लग्न में, पूरण कीनो बैठ मगन में


सतगुरु का स्मरण करे, धरे सदा जो ध्यान

प्रातः उठी पहिले पढ़े, होय कोटी कल्याण


सुनो रतन चिंतामणि, सतगुरु देव महान

वंदन श्री गोपाल का, लीजे विनय विधान


चरण शरण में मैं रहूं, रखियो मेरा ध्यान

भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान


© Rajshri Soul

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