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Ghar Me Hi Vairagi Bharat Ji

घर में ही वैरागी भरतजी | Ghar Me Hi Vairagi Bharat Ji

Pandit Sanjeev Jain

Antardhwani | Adhyatmik

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Lyrics of Ghar Me Hi Vairagi Bharat Ji by Stavan.co

घर में ही वैरागी भरतजी-२

जड़ वैभव भिन्न स्वयं में निज वैभव अनुरागी।

घर में ही वैरागी भरतजी ॥


छह खंडों को तुमने जीता, यह कहने में आया।

लेकिन जग की विजय में, उनने खुद को हारा पाया।

भोर भयी समकित की अंतर लगन मोह की भागी।

घर में… ॥१॥


धन्य-धन्य लोग वही जो, दिव्य ध्वनि सुन पाते ।

किन्तु भरतजी छह खण्डों पर, विजय ध्वजा फहराते हैं।

भाग्यवान कहे सारी दुनिया, दुनिया पर समझे जो अभागे।

घर में… ॥२॥


चक्रवर्ती ये छह खण्डों के, पर अखण्ड अन्तर में।

बाहर से भोगी दिखते, पर योगी ये अन्तर में।

चक्री पद भी नहीं सुहाये, शुद्धातम में रुचि लागी ।

घर में… ॥३॥


भावलिंगी सन्तों की प्रतिदिन, भरत प्रतिक्षा करते।

नवधा भक्ति से पड़गाहन का, भाव हृदय में धरते।

हुए एक अन्तर मुहूर्त में सारे जग के त्यागी ।

घर में…॥४॥

© Saraswati Productions

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