ज्ञायक उसके लक्ष्य में आवे | Gyayak Uske Lakshya Me Aave
Pandit Sanjeev Jain
Antardhwani | Adhyatmik
Lyrics of Gyayak Uske Lakshya Me Aave by Stavan.co
ज्ञायक उसके लक्ष्य में आवे, जो पढ़ ले इकबार,
समयसार-समयसार महाग्रन्थ समयसार ॥
काम भोग बन्धन की कथा तो सबको सहज सुलभ है |
पर से भिन्न एकत्वभाव की उपलब्धि दुर्लभ हैं।
दुर्लभ सहज सुलभ हो जावे, ऐसा चमत्कार ॥१॥
जैसे लोह समान स्वर्ण की बेड़ी भी है बाँधती,
वैसे ही शुभ अशुभ कर्म की दोनों बेड़ी बाँधती ।
पुण्य भला है पाप बुरा है अज्ञानी ये मानता,
लेकिन इनमें कोई ना अन्तर सम्यक्ज्ञानी जानता |
नवतत्त्वों में छुपा हुआ है ऐसा जाननहार ॥२॥
© Saraswati Productions
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