जिनवर का दरबार | Jinvar Ka Darbar
Pandit Sanjeev Jain
Antardhwani | Adhyatmik
Lyrics of Jinvar Ka Darbar by Stavan.co
जिनवर दरबार तुम्हारा, स्वर्गों से ज्यादा प्यारा।
जिन वीतराग मुद्रा से, परिणामों में उजियारा।।
ऐसा तो हमारा भगवन है, चरणों में समर्पित जीवन है ।।टेक।।
समवशरण के अंदर, स्वर्ण कमल पर आसन,
चार चतुष्टयधारी, बैठे हो पद्मासन;
परिणामों में निर्मलता, तुमको लखने से आये,
फिर वीतरागता बढ़ती, जो भी निज दर्शन पायें,
ऐसे तो… ।।1।।
त्रैलोक्य झलकता भगवन, कैवल्य कला में ऐसे,
तीनों ही कालों में, कब क्या होगा और कैसे;
जग के सारे ज्ञेयों को, तुम एक समय में जानो,
निज में ही तन्मय रहते, उनको न अपना मानो,
ऐसे तो… ।।2।।
दिव्यध्वनि के द्वारा, मोक्षमार्ग दर्शाया,
प्रभु अवलंबन लेकर, मैंने भी निज पद पाया;
मैं भी तुमसा बनने को, अब भेदज्ञान प्रगटाऊँ,
निज परिणति में ही रमकर, अब सम्यक दर्शन पाऊँ,
ऐसे तो… ।।3।।
© Saraswati Productions
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