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Mahaveer Ashtakram

महावीराष्टक-स्तोत्रम् | Mahaveer Ashtakram

Stotra

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Lyrics of Mahaveer Ashtakram by Stavan.co

यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः

समं भान्ति ध्रौव्य व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहिताः।

जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटन परो भानुरिव यो

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु में॥


अताम्रं यच्चक्षुः कमल-युगलं स्पन्द-रहितं

जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि।

स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


नमन्नाकेंद्राली-मुकुट-मणि-भा जाल जटिलं

लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम्।भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि

महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


यदर्च्चा-भावेन प्रमुदित-मना दर्दुर इह

क्षणादासीत्स्वर्गी गुण-गण-समृद्धः सुख-निधिः।

लभन्ते सद्भक्ताः शिव-सुख-समाजं किमुतदा

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगत-तनुर्ज्ञान-निवहो

विचित्रात्माप्येको नृपति-वर-सिद्धार्थ-तनयः।

अजन्मापि श्रीमान् विगत-भव-रागोद्भुत-गतिर्

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


यदीया वाग्गंगा विविध-नय-कल्लोल-विमला

बृहज्ज्ञानाभ्भोभिर्जगति जनतां या स्नपयति।

इदानीमप्येषा बुध-जन-मरालै परिचिता

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


अनिर्वारोद्रेकस्त्रिभुवन-जयी काम-सुभटः

कुमारावस्थायामपि निज-बलाद्येन विजितः

स्फुरन्नित्यानन्द-प्रशम-पद-राज्याय स जिनः

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


महामोहातक-प्रशमन-पराकस्मिक-भिषक्

निरापेक्षो बंधु र्विदित-महिमा मंगलकरः।

शरण्यः साधूनां भव-भयभृतामुत्तमगुणो

महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥


महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्त्या भागेन्दु ना कतम्।

यः यठेच्छ्रणुयाच्चापि स याति परमां गतिम्॥

© Rajshri Soul

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