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Meri Bhavna

मेरी भावना | Meri Bhavna

Ravindra Jain

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Lyrics of Meri Bhavna by Stavan.co

जिसने राग - द्वेष - कामादिक जीते , सब जग जान लिया |

सब जीवो को मोक्ष मार्ग का , निस्पृह हो उपदेश दिया ||

बुध्ध - वीर - जिन - हरि - हर - ब्रम्हा , या उसको स्वाधीन कहो |

भक्ति - भाव से प्रेरित हो यह , चित्त उसी में लीन रहो ||१||


विषयो की आशा नहि जिनके , साम्य भाव धन रखते हैं |

निज पर के हित - साधन में जो , निश दिन तत्पर रहते हैं ||

स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या , बिना खेद जो करते हैं |

ऐसे ज्ञानी साधू जगत के , दुःख समूह को हारते हैं ||२||


रहे सदा सत्संग उन्ही का , ध्यान उन्ही का नित्य रहे हैं |

उन्ही जैसी चर्या में यह , चित्त सदा अनुरक्त रहे हैं ||

नहीं सताऊ किसी जीव को , झूठ कभी नहीं कहा करू |

पर - धन - वनिता पर न लुभाऊ , संतोशामृत पीया करू ||३||


अहंकार का भाव न रखु , नहीं किसी पर क्रोध करू |

देख दुसरो की बढती को , कभी न इर्ष्या भाव धरु ||

रहे भावना ऐसी मेरी , सरल सत्य व्यव्हार करू |

बने जहा तक जीवन में , औरो का उपकार करू ||४||


मैत्री भाव जगत में मेरा , सब जीवो से नित्य रहे |

दींन - दुखी जीवो पर मेरे , उर से करुना - स्रोत बहे ||

दुर्जन - क्रूर - कुमार्ग - रतो पर , क्षोभ नहीं मुझको आवे |

साम्यभाव रखु में उन पर , ऐसी परिणति हो जावे ||५||


गुनी जनों को देख ह्रदय , में मेरे प्रेम उमड़ आवे |

बने जहाँ तक उनकी सेवा , करके यह मन सुख पावे ||

होऊ नहीं क्रुत्ग्न कभी में , द्रोह न मेरे उर आवे |

गुण ग्रहण का भाव रहे , नित दृस्थी न दोषों पर जावे ||६||


कोई बुरा कहो या अच्छा , लक्ष्मी आवे या जावे |

अनेक वर्षो तक जीउ या , मृत्यु आज ही आ जावे ||

अथवा कोई ऐसा ही भय , या लालच देने आवे |

तो भी न्याय मार्ग से मेरा , कभी न पद डिगने पावे ||७||


होकर सुख में मग्न न दुले दुःख में कभी न घबरावे |

पर्वत नदी श्मशान भयानक अटवी से नहीं भय खावे ||

रहे अडोल अकंप निरंतर यह मन दृद्तर बन जावे |

इस्ट वियोग अनिस्ठ योग में सहन - शीलता दिखलावे ||८||


सुखी रहे सब जीव जगत , के कोई कभी न घबरावे |

बैर पाप अभिमान छोड़ जग , नित्य नए मंगल गावे ||

घर घर चर्चा रहे धर्मं की , दुष्कृत दुस्खर हो जावे |

ज्ञान चरित उन्नत कर अपना , मनुज जन्म फल सब पावे ||९||


इति भीती व्यापे नहीं जग में , वृस्ती समय पर हुआ करे |

धर्मनिस्ट होकर राजा भी न्याय , प्रजा का किया करे ||

रोग मरी दुर्भिक्स न फैले , प्रजा शांति से जिया करे |

परम अहिंसा धर्म जगत में , फ़ैल सर्व हित किया करे ||१०||


फैले प्रेम परस्पर जगत में , मोह दूर हो राह करे |

अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं , कोई मुख से कहा करे ||

बनकर सब “युगवीर” ह्रदय , से देशोंनती रत रहा करें |

वस्तु स्वरुप विचार खुशी , से सब संकट सहा करे ||११||

© Yuki Music

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