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Shri Chandraprabhu Chalisa

श्री चन्द्रप्रभु चालीसा | Shri Chandraprabhu Chalisa

Rajendra Jain

Chalisa

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Lyrics of Shri Chandraprabhu Chalisa by Stavan.co

वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिनवाणी को ध्याय |

लिखने का साहस करूँ, चालीसा सिर-नाय ||१||


देहरे के श्री चंद्र को, पूजौं मन-वच-काय ||

ऋद्धि-सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ||२||


जय श्री चंद्र दया के सागर, देहरेवाले ज्ञान-उजागर ||३||

शांति-छवि मूरति अति-प्यारी, भेष-दिगम्बर धारा भारी ||४||

नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी-मूरति कितनी प्यारी |५||

देवों के तुम देव कहावो, कष्ट भक्त के दूर हटावो ||६||

समंतभद्र मुनिवर ने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया ||७||

तुम जग में सर्वज्ञ कहावो, अष्टम-तीर्थंकर कहलावो ||८||

महासेन के राजदुलारे, मात सुलक्षणा के हो प्यारे ||९||

चंद्रपुरी नगरी अतिनामी, जन्म लिया चंद्र-प्रभ स्वामी ||१०||

पौष-वदी-ग्यारस को जन्मे, नर-नारी हरषे तब मन में ||११||

काम-क्रोध-तृष्णा दु:खकारी, त्याग सुखद मुनिदीक्षा-धारी ||१२||

फाल्गुन-वदी-सप्तमी भार्इ, केवलज्ञान हुआ सुखदार्इ ||१३||

फिर सम्मेद-शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहाँ से ||१४||

लोभ-मोह और छोड़ी माया, तुमने मान-कषाय नसाया ||१५||

रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित-उपदेशी ||१६||

पंचम-काल महा दु:खदार्इ, धर्म-कर्म भूले सब भार्इ ||१७||

अलवर-प्रांत में नगर तिजारा, होय जहाँ पर दर्शन प्यारा ||१८||

उत्तर-दिशि में देहरा-माँहीं, वहाँ आकर प्रभुता प्रगटार्इ ||१९||

सावन सुदि दशमी शुभ नामी, प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी ||२०||

चिहन चंद्र का लख नर-नारी, चंद्रप्रभ की मूरती मानी ||२१||

मूर्ति आपकी अति-उजियाली, लगता हीरा भी है जाली ||२२||

अतिशय चंद्रप्रभ का भारी, सुनकर आते यात्री भारी ||२३||

फाल्गुन-सुदी-सप्तमी प्यारी, जुड़ता है मेला यहाँ भारी ||२४||

कहलाने को तो शशिधर हो, तेज-पुंज रवि से बढ़कर हो ||२५||

नाम तुम्हारा जग में साँचा, ध्यावत भागत भूत-पिशाचा ||२६||

राक्षस-भूत-प्रेत सब भागें, तुम सुमिरत भय कभी न लागे ||२७||

कीर्ति तुम्हारी है अतिभारी, गुण गाते नित नर और नारी ||२८||

जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी ||२९||

जो भी जैसी आश लगाता, पूरी उसे तुरत कर पाता ||३०||

दु:खिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खोकर जाते हैं ||३१||

खुला सभी हित प्रभु-द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है ||३२||

अंधा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें ||३३||

बहरा भी सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे ||३४||

अखंड-ज्योति का घृत जो लगावे, संकट उसका सब कट जावे ||३५||

चरणों की रज अति-सुखकारी, दु:ख-दरिद्र सब नाशनहारी ||३६||

चालीसा जो मन से ध्यावे,पुत्र-पौत्र सब सम्पति पावे ||३७||

पार करो दु:खियों की नैया, स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया ||३८||

प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूँ, दर्श तिहारा निश-दिन पाऊँ ||३९||


करूँ वंदना आपकी, श्री चंद्रप्रभ जिनराज |

जंगल में मंगल कियो, रखो ‘सुरेश’ की लाज ||४०||

© Yuki Cassettes

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