श्री गुरू गौतम स्वामी रास | Shri Guru Gautam Swami Raas
Prachi Jain
Stotra
Lyrics of Shri Guru Gautam Swami Raas by Stavan.co
वीर जिणेसर चरण कमल, कमला कयवासो,
पणमवि पभणिसुं सामीसाल, गोयम गुरू रासो ।
मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणो भो भविया,nजिम निवसे तुम देह गेह, गुण गण गहगहिया ।।1।।
जंबूदीव सिरि भरह खित्त, खोणी तल मंडण,
मगह देस सेणिय नरेश, रिउ दल बल खंडण ।
धणवर गुव्वर गाम नाम, जिहां गुण गण सज्जा,
विप्प वसे वसुभूइ तत्थ, तसु पुहवी भज्जा ।।2।।
ताण पुत्त सिरि इन्दभूइ, भूवलय पसिद्धो,
चउदह विज्जा विविह रूव, नारी रस लुद्धो ।
विनय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहर,
सात हाथ सुप्रमाण देह, रूवहि रंभावर ।।3।।
नयण वयण कर चरण जिणवि, पंकज जल पाडिय,
तेजहिं तारा चन्द सूर, आकाश भमाडिय।
रूवहि मयण अनंग करवि, मेल्यो निरधाडिय,
धीरमे मेरू गंभीर सिंधु, चंगम चय चाडिय ।।4।।
पेक्खवि निरूवम रूव जास, जण जंपे किंचिय,
एकाकी किल भीत्त इत्थ, गुण मेल्या संचिय ।
अहवा निच्छय पुव्व जम्म, जिणवर इण अंचिय,
रंभा पउमा गौरी गंग, रतिहां विधि वंचिय ।।5।।
नय बुध नय गुरू कवि न कोय,जसु आगल रहियो,
पंच सयां गुण पात्र छात्र, हीडे परिवरियो ।
करिय निरंतर यज्ञ कर्म, मिथ्या-मति मोहिय,
अणचल होसे चरम नाण, देसणह विसोहिय ।।6।।
।।वस्तु ।।
जंबूदीव जंबूदीव भरह वासंमि, खोणीतल मंडण,
मगह देस सेणिय नरेसर, वर गुव्वर गाम तिहां,
विप्प वसे वसुभूइ सुन्दर, तसु पुहवी भज्जा, सयल
गुण गण रूव निहाण, ताण पुत्त विज्जानिलो,
गोयम अतिहि सुजाण ।।7।।
।।भास।।
चरम जिणेसर केवलनाणी, चउविह संघ पइट्ठा जाणी ।
पावापुर सामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिं जुत्तो ।।8।।
देवहि समवसरण तिहां कीजे, जिम दीठे मिथ्यामति छीजे ।
त्रिभुवन गुरू सिंहासन बैठा, ततखिण मोह दिगंत पइट्ठा ।।9।।
क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा ।
देव दुंदुभि आकाशे बाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ।।10।।
कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्र जसु मांगे सेवा ।
चामर छत्र सिरोवरि सोहे, रूवहि जिनवर जग सहु मोहे ।।11।।
उपसम रस भर वर वरसंता, जोजन वाणी वखाण करंता ।
जाणवि वद्धमाण जिण पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया ।।12।।
कंत समोहिय जलहलकंता, गयण विमाणहि रणरणकंता ।
पेक्खवि इन्दभूइ मन चिंते, आवे अम यज्ञ हुवंते ।।13।।
तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पहुता गह-गहता ।
तो अभिमाने गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे ।।14।।
मूढा लोक अजाण्यु बोले, सुर जाणंता इम कांइ डोले ।
मो आगल कोई जाणा भणीजे, मेरू अवर किम उपमा दीजे ।।15।।
।।वस्तु ।।
वीर जिणवर वीर जिणवर नाण सम्पन्न, पावापुर
सुरमहिय, पत्त नाह संसार तारण, तिहिं देवहिं
निम्महिय, समवसरण बहु सुक्ख कारण, जिणवर
जग उज्जोय करे, तेजहि करी दिनकार, सिंहासण
सामी ठव्यो, हुओ सुजय जयकार ।।16।।
।।भास।।
तो चढ़ियो घणमाण गजे, इन्दभूइ भूदेव तो,
हुंकारो करी संचरिय, कवणसु जिणवर देव तो ।
जोजन भूमि समवसरण, पेक्खवि प्रथमारंभ तो,
दह दिसि देखे विबुध वधू,आवंति सुररंभ तो ।।17।।
मणिमय तोरण दंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो,
वैर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो ।
सुर नर किन्नर असुर वर, इंद्र इंद्राणी राय तो,
चित्त चमक्किय चिंतवे ए,सेवंता प्रभुपाय तो ।।18।।
सहसकिरण सामी वीरजिण,पेखिय रूप विशाल तो,
एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाल तो ।
तो बोलावड़ त्रिजग गुरू, इंदभूइ नामेण तो,
श्रीमुख संशय सामी सवे, फेडे वेद पएण तो ।।19।।
मान मेली मद ठेली करी, भगतिहिं नाम्यो सीस तो,
पंच सयांसुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सीस तो ।
बंधव संजम सुणवि करी, अग्निभूइ आवेय तो,
नाम लेई आभास करे,ते पण प्रतिबोधेय तो ।।20।।
इण अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर इग्यार तो ।
तो उपदेशे भुवन गुरू, संयमशुं व्रत बार तो ।
बिहुं उपवासे पारणो ए, आपणपे विहरंत तो,
गोयम संयम जग सयल,जयजयकार करत तो ।।21।।
।।वस्तु।।
इंदभूइ इंदभूइ चढ़ियो बहुमान, हुंकारो करि कंपतो,
समवसरण पहुतो तुरंत, जे जे संसा सामि सवे,
चरमनाह फेडे फुरंत। बोधिबीज संज्झाय मने,
गोयम भवहि विरत्त, दिक्खा लेई सिक्खा सहिय,
गणहर पय संपत्त ।।22।।
।।भास।।
आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो,
दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय झरो ।
समवसरण मझार, जे जे संशय ऊपजे ए,
ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ।।23।।
जिहां 2 दीजे दीक्ख, तिहां तिहां केवल ऊपजे ए,
आप कने अणहुंत, गोयम दीजे दान इम ।
गुरू ऊपर गुरू भक्ति, सामी गोयम ऊपनिय,
इण छल केवलनाण, रागज राखे रंग भरे ।।24।।
जो अष्टापद शैल, वंदे चढी चउवीस जिण,
आतम लब्धि वसेण, चरण सरीरी सोय मुणि ।
इय देसणा निसुणेइ, गोयम गणहर संचरिय,
तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ।।25।।
तप सोसिय निय अंग, अम्ह सगति न उपजे ए,
किम चढ़से दृढ़काय, गज जिम दीसे गाजतो ए।
गिरूओ एणे अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए,
तो मुनि चढ़ियोवेग,आलंबवि दिनकर किरण।।26।।
कंचण मणि निप्पन्न, दंडकलश ध्वजवड सहिय,
पेखवि परमाणन्द, जिणहर भरहेसर महिय ।
निय2 काय प्रमाण,चिहुं दिसि संठिय जिणह बिंब,
पणमवि मनउल्लास,गोयमगणहर तिहांवसिय।।27।।
वयर सामीनो जीव, तिर्यक् जुंभक देव तिहां,
प्रतिबोध्या पुडंरीक, कंडरिक अध्ययन भणी ।
वलता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे,
लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ।।28।।
खीर खांड घृत आण, अमिय वूठ अंगूठ ठवे,
गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे ।
पंचसया शुभ भाव, उज्ज्वल भरियो खीर मिसे,
साचा गुरू संयोग,कवल ते केवल रूप हुआ।।29।।
पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकार त्रय,
पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे ।
जाणे जिणवि पीयूष गाजंति घण मेघ जिम,
जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया ।।30।।
।।वस्तु।।
इण अनुक्रम इण अनुक्रम नाण संपन्न, पन्नरह सय
परिवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ, जाणेवि
जगगुरू वयण, तिहि नाण अप्पाण निंदइ ।
चरण जिनेसर इम भणे, गोयम म करिस खेउ,
छेही जाय आपण सही, होस्यां तुल्ला बेउ ।।31।।
।।भास।।
सामियो ए वीर जिणन्द,पूनमचन्द जिम उल्लसिय,
विहरियो ए भरह-वासम्मि, वरस बहुत्तर संवसिय
ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संघे सहिय,
आवियो ए नयणानंद,नयर पावापुर सुरमहिय।।32।।
पेखियो ए गोयम सामि, देवशर्मा प्रतिबोध करे,
आपणो ए त्रिसला देवि, नंदन पुहतो परमपए
वलतो ए देव आकाश,पेखवि जाण्यो जिण समेए,
तो मुनिए मन विखवाद,नादभेद जिम ऊपनोए ।।33।।
इण समे ए सामिय देखि,आप कनासुं टालियो ए।
जाणतोए तिहुअण नाह,लोकविवहार न पालियोए।
अतिभवं ए कीधलुं सामि,जाण्यु केवल मांगसे ए।
चिन्तव्यु ए बालक जेम,अहवा केडे लागसेए।।34।।
हुं किम ए वीर जिणंद, भगतिहिं भोले भोलव्यो ए,
आपणो ए अविहड नेह, नाह न संपे साचव्यो ए।
साचो ए वीतराग, नेह न हेजे लालियो ए,
तिणसमे ए गोयमचित्त,राग वैरागे वालियोए।।35।।
आवतो ए जो उल्लट्ट, रहितो रागे साहियो ए,
केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज ऊमाहियो ए ।
तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए,
गणधरूए करय बखाण,भवियण भव जिम निस्तरे ए ।।36।।
।।वस्तु।।
पढम गणहर पढम गणहर वरस पच्चास, गिहवासे
संवसिय, तीस वरस संजम विभूसिय, सिरि केवल
नाण पुण, बार वरस तिहुअण नमंसिय, राजगृही
नयरी ठव्यो, बाणवइ वरिसाउ, सामी गोयम
गुणनिलो होसे सिवपुर ठाउ ।।37।।
॥भास।।
जिम सहकारे कोयल टंहुके,
जिम कुसुमवने परिमल महके,
जिम चन्दन सोगंध निधि ।
जिम गंगाजल लहर्या लहके,
जिम कणयाचल तेजे झलके,
तिम गोयम सोभाग निधि ।।38।।
जिम मान सरोवर निवसे हंसा,
जिम सुरतरू वर कणयवतंसा,
जिम महुयर राजीव वने ।
जिम रयणायर रयणे विलसे,
जिम अंबर तारागण विकसे,
तिम गोयम गुण केलि वने ।।39।।
पूनम निसि जिम ससियर सोहे,
सुरतरू महिमा जिम जग मोहे,
पूरब दिसि जिम सहसकरो ।
पंचानन जिम गिरिवर राजे,
नरवड़ घर जिम मयगल गाजे,
तिम जिन शासन मुनि पवरो ।।40।।
जिम सुर तरूवर सोहे साखा,
जिम उत्तम मुख मधुरी भाषा,
जिम वन केतकी महमहे ए ।
जिम भूमिपति भुयबल चमके,
जिम जिन मंदिर घण्टा रणके,
गोयम लब्धे गहगह्मो ए ।।41।।
चिन्तामणि कर चढ़ियो आज,
सुर तरू सारे वंछित काज,
कामकुम्भ सह वश हुआ ए।
कामगवी पूरे मन कामी,
अष्ट महासिद्धि आवे धामी,
सामी गोयम अणुसरो ए ।।42।।
पणवक्खर पहिलो पभणीजे,
माया बीजो श्रवण सुणीजे,
श्रीमती शोभा संभवे ए ।
देवह धुरि अरिहंत नमीजे,
विनय पहु उवज्झाय थुणीजे,
इण मंत्रे गोयम नमो ए ।।43।।
पर घर वसतां कांई करीजे,
देश देशांतर कांई भमीजे,
कवण काज आयास करो।
प्रह ऊठी गोयम समरीजे,
काज समग्गल ततखिण सीजे,
नव निधि विलसे तिहां घरे ए ।।44।।
चउदह सय बारोत्तर वरसे,
गोयम गणहर केवल दिवसे,
कियो कवित्त उपगार परो ।
आदिहिं मंगल ए पभणीजे,
परव महोच्छव पहिलो दीजे,
रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ।।45।।
धन माता जिण उयरे धरिया,
धन्य पिता जिण कुल अवतरियो,
धन्य सुगुरू जिण दिक्खियो ए।
विनयवंत विद्या भण्डार,
तसु गुण पुहवी न लब्भइ पार,
वड जिम साखा विस्तरो ए।
गोयम सामीनो रास भणीजे,
चउविह संघ रलियायत कीजे,
रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ।।46।।
कुंकुम चंदन छड़ा दिवरावो,
माणक मोतीनां चौक पुरावो,
रयण सिंहासण बेसणो ए।
तिहां बेसी गुरू देशना देसी,
भविक जीवना काज सरेसी,
नित-नित मंगल करो ।।47।।
।। इति गौतमरास ।।
राग प्रभाती जे करे, प्रह उगमते सूर
भूख्यां भोजन संपजे, कुरला करे कपुर ।।1।।
ग्राम तणे पैशारणे, गुरू गौतम समरंत ।
इच्छा भोजन घर कुशल, लच्छी लील करंत ।।2।।
अंगूठे अमृत बसे, लब्धि तणा भंडार ।
जे गुरू गौतम समरिये, मनवांछित दातार ।।3।।
पुंडरीक गोयम पमुहा, गणधर गुण संपन्न ।
प्रह उठी ने प्रणमतां, चउदेसे बावन्न ।।4।।
खंतिखमंगुणकलियं, सुविणियं सव्वलद्धि संपणं ।
वीरस्स पढमं सीसं, गोयम सामी नमसामि ।।5।।
सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने।
सर्वलब्धि निधानाय, गौतमस्वामी ने नमः ।।6।।
© Prachi Jain
Listen to Shri Guru Gautam Swami Raas now!
Over 10k people are enjoying background music and other features offered by Stavan. Try them now!
Contribute to the biggest Jain's music catalog
Over 10k people from around the world contribute to creating the largest catalog of lyrics ever. How cool is that?
दान करे (Donate now)
हम पूजा, आरती, जीव दया, मंदिर निर्माण, एवं जरूरतमंदो को समय समय पर दान करते ह। आप हमसे जुड़कर इसका हिस्सा बन सकते ह।