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Vinay Paath (Eh Vidhi Thado) Raag 2

विनय पाठ (इह विधि थाडो) राग 2 | Vinay Paath (Eh Vidhi Thado) Raag 2

Rageshree Anil Agarkar | Arohi Anil Agarkar

Stotra

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Lyrics of Vinay Paath (Eh Vidhi Thado) Raag 2 by Stavan.co

इह विधि ठाड़े होयके, प्रथम पढ़ें यो पाठ |

धन्य जिनेश्वर देव तुम! नाशे कर्म जु आठ ||(1)


अनंत चतुष्टय के धनी, तुम ही हो सिरताज |

मुक्ति-वधू के कंत तुम, तीन भुवन के राज ||(2)


तिहुँ जग की पीड़ा-हरन, भवदधि शोषणहार |

ज्ञायक हो तुम विश्व के, शिवसुख के कर्तार ||(3)


हर्ता अघ-अंधियार के, कर्ता धर्म-प्रकाश |

थिरतापद दातार हो, धर्ता निजगुण रास ||(4)


धर्मामृत उर जलधिसों, ज्ञानभानु तुम रूप |

तुमरे चरण-सरोज को, नावत तिहुं जग भूप ||(5)


मैं वन्दौं जिनदेव को, कर अति निर्मल भाव |

कर्मबंध के छेदने, और न कछू उपाव ||(6)


भविजन को भवकूपतैं, तुम ही काढ़नहार |

दीनदयाल अनाथपति, आतम गुणभंडार ||(7)


चिदानंद निर्मल कियो, धोय कर्मरज मैल |

सरल करी या जगत में, भविजन को शिवगैल ||(8)


तुम पदपंकज पूजतैं, विघ्न रोग टर जाय |

शत्रु मित्रता को धरै, विष निर्विषता थाय ||(9)


चक्री खगधर इंद्र-पद, मिलें आपतैं आप |

अनुक्रमकर शिवपद लहें, नेम सकल हनि पाप ||(10)


तुम बिन मैं व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन |

जन्म जरा मेरी हरो, करो मोहि स्वाधीन ||(11)


पतित बहुत पावन किये, गिनती कौन करेव |

अंजन से तारे प्रभु! जय! जय! जय! जिनदेव ||(12)


थकी नाव भवदधिविषै तुम प्रभु पार करेव |

खेवटिया तुम हो प्रभु! जय! जय! जय! जिनदेव ||(13)


रागसहित जग में रुल्यो, मिले सरागी देव |

वीतराग भेंटो अबै, मेटो राग कुटेव ||(14)


कित निगोद! कित नारकी! कित तिर्यंच अज्ञान |

आज धन्य! मानुष भयो, पायो जिनवर थान ||(15)


तुमको पूजें सुरपती, अहिपति नरपति देव |

धन्य भाग्य मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव ||(16)


अशरण के तुम शरण हो, निराधार आधार |

मैं डूबत भवसिंधु में, खेओ लगाओ पार ||(17)


इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान |

अपनो विरद निहारि के, कीजै आप समान ||(18)


तुमरी नेक सुदृष्टितें, जग उतरत है पार |

हा!हा! डूबो जात हौं, नेक निहारि निकार ||(19)


जो मैं कहहूँ औरसों, तो न मिटे उर-झार |

मेरी तो तोसों बनी, तातैं करौं पुकार ||(20)


वन्दौं पांचों परमगुरु, सुरगुरु वंदत जास |

विघनहरन मंगलकरन, पूरन परम प्रकाश ||(21)


चौबीसों जिन पद नमौं, नमौं शारदा माय |

शिवमग-साधक साधु नमि, रच्यो पाठ सुखदाय ||(22)


मंगल मूर्ति परम पद, पंच धरौं नित ध्यान |

हरो अमंगल विश्व का, मंगलमय भगवान |१|


मंगल जिनवर पद नमौं, मंगल अरिहन्त देव |

मंगलकारी सिद्ध पद, सो वन्दौं स्वयमेव |२|


मंगल आचारज मुनि, मंगल गुरु उवझाय |

सर्व साधु मंगल करो, वन्दौं मन वच काय |३|


मंगल सरस्वती मातका, मंगल जिनवर धर्म |

मंगल मय मंगल करो, हरो असाता कर्म |४|


या विधि मंगल से सदा, जग में मंगल होत |

मंगल नाथूराम यह, भव सागर दृढ़ पोत |५|

© Rajshri Soul

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