






Shri 1008 Parshvnath Digamber Jain Mandir, Mangalgi, District - Kalaburagi (Karnataka)
Mangalgi, Kalaburagi, KARNATAKA
Temple History
Digamber Jain Temple in Mangalgi, Kalaburagi Credit: Shri Amit Jain प्राचीन पार्श्वनाथ तीर्थकर प्रतिमा जी @ मंगलगी ग्राम, जिला - गुलबर्गा, कर्नाटक Ancient Image of Lord Parshwantha @ Mangalgi Village, Dist - Gulbarga, Karnataka. आधुनिक कर्नाटक राज्य का गुलबर्गा क्षेत्र पुरातात्विक रूप से राष्ट्रकूट, पश्चिमी चालुक्य शैली के जैन देवताओं और अवशेषों से समृद्ध है। जैसा कि विभिन्न साहित्यिक स्रोतों और अभिलेखीय सुरागों से स्पष्ट है कि मान्यखेत जिसे आधुनिक रूप से मालखेड के नाम से जाना जाता है, मध्यकालीन राष्ट्रकूट सम्राटों की राजधानी थी। इस प्राचीन राजधानी के बाहरी इलाके में और गुलबर्गा के आसपास, कई जैन पंथ हैं जो उस समय आम जनता में जैन धर्म के प्राचीन गौरव और गढ़ की प्रशंसा करते थे। आधुनिक कर्नाटक राज्य का गुलबर्गा क्षेत्र राष्ट्रकूट और चालुक्य कालीन प्राचीन जैन मंदिरों, प्रतिमाओं और पुरासम्पदा से परिपूर्ण है। जैसा की प्राचीन साहित्यिक सूत्रों और शिलालेखीय प्रमाणों के आधार पर सिद्ध है की मलखेड नगर प्राचीन राष्ट्रकूट राजाओं की राजधानी हु आकरता था और इसे मान्यखेट के नाम से जाना जाता है। मलखेड़ नगर मध्ययुग में एक सु समृद्ध नगर होकर अनेक जैन मंदिरों से युक्त था क्योंकि राष्ट्रकूट शासकों के जैन धर्म के अनुयायी होने में लेश मात्र भी सन्देश नहीं है। यह प्राचीन जैन मंदिर और इसकी पुरासम्पदा. शिलालेख इत्यादि आज भी मलखेड नगर के आस पास स्थित गाँवों में प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध है। यह प्राचीन जैन मंदिर तत्कालीन शासक वर्ग और प्रजा में प्रचारित प्रचलित और लोकप्रिय जैन धर्म का यशोगान आज भी कर रहे है। ट्रॉनी यह है कि इनमें से कुछ महान प्राचीन मंदिर लगभग जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं और प्राचीन धरोहरों को हड़प लिया गया है, परिवर्तित कर दिया गया है और मूर्तिभंजन का शिकार बना दिया गया है। आधुनिक युग में इस क्षेत्र को जैन धर्मावलंबियों की अधिक आबादी वाला क्षेत्र नहीं माना जाता है, इसीलिए स्थितियाँ सबसे खराब हो गई हैं। प्राचीन मंदिर की पूजा स्थानीय किसानों और ग्रामीणों द्वारा अपने रीति-रिवाजों के अनुसार की जाती रही है। जैन धर्मानुयायियों और इतिहास में रुचि रखने वाले उत्साही सज्जनों के लिए कष्ट का विषय यह है की यह प्राचीन धरोहर नष्ट होने के कगार पर है और प्राचीन जैन मंदिर आज ध्वंसात्मक स्थिति में पहुँच गए है। प्राचीन पुरासम्पदा अधिग्रहित कर के परिवर्तित कर दी गयी है और प्राचीन प्रतिमाओं को मूर्तिध्वसकों नष्ट कर दिया है। आज वर्तमान में जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या इस क्षेत्र में काफी कम होने से परिस्थितियां अत्यंत विकट हो चली है। संतोष की बात यह है की जैन पुरासम्पदा को स्थानीय ग्रामीण और किसान अपने मतानुसार उसकी पूजा अर्चना कर सुरक्षित बनाये हुए है। पश्चिमी या भारतीय विभिन्न विद्वानों ने मालखेड, भांकुर, सेडर, हुनासी-हादीगल्ली, अलंद, अत्तानुरु, गोग्गी, जेवर्गी, अल्लूर, चित्तपुर, मंगलगी जैसे महान केंद्रों का दौरा किया है और अभिलेखों का अध्ययन किया है और देवताओं और मूर्तियों की सूक्ष्मता से जांच की है। कई भारतीय और विदेशी विद्वान् इस क्षेत्र का दौरा कर चुके है और विभिन्न स्थानों का बारीकी से निरीक्षण कर चुके है। इन स्थानों में प्रमुखता से मलखेड, सेडम हुनासीहडिगली. आलंद, अटानुरु, गोग्गी - जेवरागी, अल्लुरू, चित्तापुर, भंकुर, हरसूर और मंगलगी आदि जगह पर विभिन्न शिलालेखों जैन पुरासम्पदा, और प्रतिमाओं का बारीकी से अध्ययन किया जा चूका है। मंगलगी :- नामक गाँव कर्नाटक राज्य के गुलबर्गा जिले के चित्तापुर तालुका में स्थित है. यह स्थान मलखेड़ नगर से अधिक दूरी पर स्थित नहीं है। यह स्थान गुलबर्गा जिला मुख्यालय से लगभग ५५ किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है और यह मलखेड नगर से लगभग तेङ्गाली होते हुए लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंगलगी की पुरातात्विक खोज:- यह स्थान राष्ट्रकूट और पश्चिमी चालुक्य सम्राटों के शासनकाल के दौरान विकसित हुए जैन धर्म से संबंधित अपने प्राचीन पुरातात्विक अवशेषों-अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है। गांव के अंतिम छोर पर 23वें भगवान पार्श्वनाथ की विशाल विशाल अखंड मूर्ति स्थित है। पार्श्वनाथ की मूर्ति लगभग 11 फीट ऊंची है और शायद गुलबर्गा क्षेत्र में सबसे ऊंची ध्यान मुद्रा वाली जैन मूर्ति है। यह अनुमान लगाया गया है कि मूर्तिकला 9वीं शताब्दी के जैन देवताओं का हिस्सा होनी चाहिए। हालाँकि भव्य मंदिर आज मौजूद नहीं है लेकिन हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि मूर्तिकला महान कलात्मक जैन मंदिर का एक हिस्सा थी। छवि आकाश के नीचे खुली है और जिना की रक्षा के लिए कोई आश्रय प्रदान नहीं किया गया है। चूँकि गाँव में कोई जैन परिवार मौजूद नहीं है, इसलिए स्थानीय हिंदुओं द्वारा अपनी परंपराओं और अनुष्ठानों के अनुसार जीना की पूजा की जाती रही है। मंगलगी से प्राप्त पुरा सम्पदा :- यह स्थान जैन धर्म से सम्बंधित पुरा सम्पदा का केंद्र है और यहाँ से कई राष्ट्रकूट कालीन और चालुक्य कालीन जैन पुरावशेष प्राप्त हो चुके है। इस गाँव के सुदूर छोर पर स्थित एक ११ फीट उतुंग पार्श्वनाथ भगवान् की प्राचीन प्रतिमा अवस्थित है। यह प्राचीन प्रतिमा एक पाषाण से निर्मित होकर कायोत्सर्ग अवस्था में विराजमान है। शायद यह प्रतिमा इस क्षेत्र में स्थित सबसे ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा है। विद्वानों के मतानुसार यह अनुमान लगाया गया कि यह प्राचीन प्रतिमा लगभग 9 वि शताब्दी के पार्श्व जिनालय से सम्बंधित हैं। वर्तमान में यह पार्श्व मंदिर विद्यमान नहीं है पर इस बात के स्पष्ट सबूत है की यहाँ पर 9 वि शताब्दी में निर्मित जैन मंदिर था। वर्तमान में यहाँ स्थित जैन मंदिर की पार्श्व प्रतिमा खुले आकाश के नीचे अवस्थित है। चूँकि इस गाँव में कोई भी जैन परिवार वर्तमान में स्थित नहीं है अतः स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा इस प्रतिमा की पूजा अर्चना और देखभाल की जाती है। जीना पार्श्व की छवि विकृत अवस्था में है, लेकिन राष्ट्रकूट युग की मंत्रमुग्ध मूर्तिकला कला के साथ बहुत कलात्मक रूप से तैयार की गई है। यह छवि हमें तेलंगाना राज्य के मेडक जिले में स्थित कुलचरम की जीना छवि की याद दिलाती है। जीना के सिर पर सर्प का फन बारीक नक्काशी से बना है और जीना के पीछे लहरदार मुद्रा वाला सर्प मूर्तिकला को मनोरम बनाता है। पार्श्व जिनेन्द्र की प्रतिमा खंडित अवस्था में है परंतु इस प्रतिमा की कलात्मक शैली को देखकर इस प्रतिमा को राष्ट्रकूट कालीन कहना उचित ही होगा। इस प्रतिमा के दर्शन के पश्चात हमे इस प्रतिमा का तेलंगाना के मेडक जिले के कुलचाराम में स्थित पार्श्व प्रभु की प्रतिमा के साथ कलात्मक साम्य का अनुभव होता है। प्रभु पार्श्व के शीश पर स्थित नाग फणों की कलात्मकता अनायास ही आकर्षित करती है। भगवान् जिनेन्द्र के पार्श्व में स्थित लहरदार सर्प इस प्रतिमा को अत्यंत चित्ताकर्षक बनाता है। Two broken parts of pillars of dilapidated temple, Padmashila of celling, Yakshini Padmawati चार भुजाओं और खाली गद्दीदार पद्मासन जिना की पटिया प्राचीन स्थल पर बिखरी हुई है इस भग्नावशेष जैन मंदिर के खंडित स्तम्भ, मंदिर के छत की पद्म शिला, चतुर्भुजा देवी पद्मावती यक्षिणी और रिक्त पर्यक प्रस्तर जो की पद्मासन भगवान् के पार्श्व में स्थित होता हैं आदि प्राप्त हुये है। यह सब पुरा सम्पदा मंदिर के यत्र तत्र बिखरी हुयीपड़ी थी। वर्तमान में यह सब अवशेष जिन प्रतिमा के आस पास ही विराजमान है। पार्श्व जिनेन्द्र की प्रतिमा खंडित अवस्था में है परंतु इस प्रतिमा की कलात्मक शैली को देखकर इस प्रतिमा को राष्ट्रकूट कालीन कहना उचित ही होगा। इस प्रतिमा के दर्शन के पश्चात हमे इस प्रतिमा का तेलंगाना के मेडक जिले के कुलचाराम में स्थित पार्श्व प्रभु की प्रतिमा के साथ कलात्मक साम्य का अनुभव होता है। प्रभु पार्श्व के शीश पर स्थित नाग फणों की कलात्मकता अनायास ही आकर्षित करती है। भगवान् जिनेन्द्र के पार्श्व में स्थित लहरदार सर्प इस प्रतिमा को अत्यंत चित्ताकर्षक बनाता है। जीर्ण-शीर्ण मंदिर के खंभों के दो टूटे हुए हिस्से, छतरी की पद्मशिला, चार भुजाओं वाली यक्षिणी पद्मावती और पद्मासन जिन की खाली गद्दीदार पटिया प्राचीन मंदिर स्थल पर बिखरी हुई है। अब इन अवशेषों को एकत्र कर 11 फीट ऊंची जिन पार्श्व प्रतिमा के साथ रख दिया जाता है। इस भग्नावशेष जैन मंदिर के खंडित स्तम्भ, मंदिर के छत की पद्म शिला, चतुर्भुजा देवी पद्मावती यक्षिणी और रिक्त पर्यक प्रस्तर जो की पद्मासन भगवान् के पार्श्व में स्थित होता हैं आदि प्राप्त हुये है। यह सब पुरा सम्पदा मंदिर के यत्र तत्र बिखरी हुयीपड़ी थी। वर्तमान में यह सब अवशेष जिन प्रतिमा के आस पास ही विराजमान है। मंगलगी गांव के प्रवेश द्वार में; चार भुजाओं वाली धरनेद्र यक्ष की एक मूर्ति नवनिर्मित हिंदू मंदिर में रखी गई है, लेकिन छवि की पहचान प्रोफेसर नागराजैया ने की थी। यह छवि 9वीं शताब्दी ईस्वी की है और यह टूटे हुए जैन पार्श्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा थी। इस मंगलगी ग्राम के प्रारम्भ में भी एक धरणेन्द्र यक्ष की प्राचीन प्रतिमा जो चतुर्भुजस्वरुप दर्शायी गयी है। आज भी नए बनाये गए हिन्दू मंदिर में विराजमान है। इस प्राचीन प्रतिमा को प्रोफेसर नागराजैय्या ने पहचान कर में वर्णित भी किया है। यह प्राचीन प्रतिमा संभवतः ९ वि शताब्दी से सम्बंधित होकर प्राचीन जैन मंदिर से विलगित प्रतीत होती है। श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (तीर्थ संरक्षणी) महासभा, लखनऊ - दिल्ली
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Morning: 5:30 AM - 11:30 AM
Evening Hours
Evening: 5:30 PM - 8:30 PM
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