Stavan
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Shri Ahikshetra Parshvnath Atishaya Tirth Kshetra Digamber Jain Mandir, Ram Nagar, District - Bareilly (U.P.)

Ram Nagar, Bareilly, UTTAR PRADESH

Temple History

अहिच्छत्र आजकल रामनगर गाँव का एक भाग है। इसको प्राचीन काल में संख्यावती नगरी कहा जाता था। एक बार भगवान पार्श्वनाथ मुनिदशा में विहार करते हुए संख्यावती नगरी के बाहर उद्यान में पधारे और वहाँ प्रतिमायोग धारण करके ध्यानलीन हो गये। संयोगवश संवर नामक एक देव विमान द्वारा आकाश मार्ग से जा रहा था। ज्यों ही विमान पार्श्वनाथ के ऊपर से गुजरा कि वह वहीं रुक गया। उग्र तपस्वी ऋद्धिधारी मुनि को कोई सचेतन या अचेतन वस्तु लाँघकर नहीं जा सकती। संवरदेव ने इसका कारण जानने के लिए नीचे की ओर देखा। पार्श्वनाथ को देखते ही जन्म-जन्मान्तरों के वैर के कारण वह क्रोध से भर गया। विवेकशून्य हो वह अपने पिछले जीवन में पार्श्वनाथ के हाथों हुए अपमान का प्रतिशोध लेने को आतुर हो उठा और अनेक प्रकार के भयानक उपद्रव कर उन्हें त्रास देने का प्रयत्न करने लगा किन्तु स्वात्मलीन पार्श्वनाथ पर इन उपद्रवों का रंचमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। न वे ध्यान से चल-विचल हुए और न उनके मन में आततायी के प्रति दुर्भाव ही आया। तभी नागकुमार देवों के इन्द्र धरणेन्द्र और उसकी इन्द्राणी पद्मावती के आसन कम्पित हुए। वे पूर्व जन्म में नाग-नागिन थे। संवरदेव तापसी था। पार्श्वनाथ उस समय राजकुमार थे। जब पार्श्वनाथ सोलह वर्ष के किशोर थे तब गंगा-तट पर सेना के साथ हाथी पर चढ़कर वे भ्रमण के लिए निकले। उन्होंने एक तपस्वी को देखा, जो पंचाग्नि तप कर रहा था। कुमार पार्श्वनाथ अपने अवधिज्ञान के नेत्र से उसके इस विडम्बनापूर्ण तप को देख रहे थे। इस तपस्वी का नाम महीपाल था और यह पार्श्वनाथ का नाना था। पार्श्वनाथ ने उसे नमस्कार नहीं किया। इससे तपस्वी मन में बहुत क्षुब्ध था। उसने लकड़ी काटने के लिए अपना फरसा उठाया ही था कि भगवान पार्श्वनाथ ने मना किया ‘इसे मत काटो, इसमें जीव हैं।’ किन्तु उनके मना करने पर भी उसने लकड़ी काट डाली। इससे लकड़ी के भीतर रहने वाले सर्प और सर्पिणी के दो टुकड़े हो गये। परम करुणाशील पार्श्व प्रभु ने असह्य वेदना में तड़फते हुए उन सर्प-सर्पिणी को णमोकार मंत्र सुनाया। मंत्र सुनकर वे अत्यन्त शांत भाव के साथ मरे और नागकुमार देवों के इन्द्र और इन्द्राणी के रूप में धरणेन्द्र और पद्मावती हुए। महीपाल अपनी सार्वजनिक अप्रतिष्ठा की ग्लानि में अत्यन्त कुत्सित भावों के साथ मरा और ज्योतिष्क जाति का देव बना। उसका नाम अब संवर था। उसी देव ने अब मुनि पार्श्वनाथ से अपने पूर्व वैर का बदला लिया। धरणेन्द्र और पद्मावती ने आकर प्रभु के चरणों में नमस्कार किया और भगवान का उपसर्ग दूरकर अपनी भक्ति का परिचय प्रदान किया। पार्श्वनाथ तो इन उपद्रवों, रक्षाप्रयत्नों और क्षमा-प्रसंगों से निर्लिप्त रहकर आत्मध्यान में लीन थे। उन्हें तभी केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। वह चैत्र कृष्णा चतुर्थी का दिन था। इन्द्रों और देवों ने आकर समवसरण में भगवान के ज्ञानकल्याणक की पूजा की। उस समय संवरदेव ने भी प्रभु के चरणों में जाकर अपने पापों का प्रायश्चित किया। भगवान पार्श्वनाथ का वहाँ पर प्रथम जगत्कल्याणकारी उपदेश हुआ। उक्त घटना का चित्रण आचार्य समंतभद्र (३-४ शताब्दी) ने अपने स्वयंभू स्तोत्र के ‘पार्श्वनाथ-स्तवन’ में इस प्रकार किया है- वलाहवैर्वैरिवशैरुपद्रुतो, महामना यो न चचाल योगत:।।१।। बृहत्फणामण्डलमण्डपेन यं स्फुरित्तडित्पिङ्गरुचोपसर्गिणम्। जुगूह नागो धरणो धराधरं विरागसन्ध्यातडिदम्बुदो यथा।।२।। अर्थात् तमालवृक्ष के समान नीले, इन्द्रधनुष तथा बिजली से युक्त और भयंकर वङ्का, वायु और वृष्टि को सब ओर फैकने वाले मेघों से, जो कि पूर्व जन्म के वैरी देव के द्वारा लाये गये थे, पीड़ित होने पर भी महामना पार्श्वदेव ध्यान से विचलित नहीं हुए। उस समय धरणेन्द्र नामक नाग ने चमकती हुई बिजली के समान पीत कान्ति को लिए हुए अपने विशाल फणामण्डल का मण्डप बनाकर उपसर्ग से ग्रस्त पार्श्वनाथ को उसी प्रकार ढक लिया,जिस प्रकार कृष्ण संध्या में बिजली से मुक्त मेघ पर्वत को ढक लेते हैं। भगवान आत्मध्यान में विचरण करते हुए निरन्तर शुक्लध्यान में आगे बढ़ रहे थे। उनके कर्म नष्ट हो रहे थे। आत्मा की विशुद्धि बढ़ती जा रही थी। तभी उन्हें लोकालोक-प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त हो गया। सारे उपसर्ग स्वत: ही समाप्त हो गये। देवों और इन्द्रों के आसन कम्पित हुए। अतिशय क्षेत्र—नागेन्द्र द्वारा भगवान के ऊपर छत्र लगाया गया था, इस कारण इस स्थान का नाम संख्यावती के स्थान पर अहिच्छत्र हो गया। साथ ही भगवान के केवलज्ञान कल्याणक की भूमि होने के कारण यह पवित्र तीर्थक्षेत्र हो गया।

Temple Category

Digamber Temple

Temple Timings

Morning Hours

Morning: 5:30 AM to Evening: 8:30 PM

Evening Hours

Morning: 5:30 AM to Evening: 8:30 PM

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How to Reach

By Train

Train: Bareilly Railway Station

By Air

Air: Lucknow Airport

By Road

It is about 29 kilometres from Bareill and is well connected with roads

Location on Map

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