Shri Ayad Jain Tirth, Ayad, Ganpati Nagar, Udaipur (Rajasthan)
Ganpati Nagar, Udaipur, RAJASTHAN
Temple History
तपागच्छ की उदगम स्थली आघाटपुर-आयड़ तीर्थ उदयपुर। श्री आयड तीर्थ से तपागच्छ परम्परा शुरू हुई । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में आयड़ तीर्थ स्थित श्री आदिनाथ, शान्तिनाथ, शंखेश्र्वर पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, सुपाश्र्वनाथ भगवान के पांच शिखरबद् जैन मंदिर है । उदयपुर में आयड तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध पांच जिनालयों में प्रतिष्ठित अधिकांश प्रतिमाएं महाराजा संप्रति कालीन है। 1. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय में मूलनायक प्रभु की प्रतिमा पर विक्रम संवत 1029 तथा आचार्य श्री यशोभद्रसूरीजी का नाम अंकित है। वर्तमान में मूलनायक के रूप में स्थापित श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई थी जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत 2058 में हुई। 2. श्री शांतिनाथ मंदिर में श्री शांतिनाथ प्रभु की प्राचीन भूगर्भ से प्राप्त प्रतिमा प्रतिष्ठित है! 3. श्री आदेश्वर मंदिर की प्रतिमा जी आचार्य सुहस्तिसूरिजी के हाथों प्रतिष्ठित है! 4. वाडी में स्थित श्री महावीरस्वामी जिनालय की प्रतिमा भी संप्रतिकालीन है! 5. श्री सुपार्श्वनाथ मंदिर 12 वीं सदी का है! इसमें भी भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमा प्रतिष्ठित है! 1) श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर यह मंदिर आयड तीर्थ परिसर से बाहर की ओर पश्चिम दिशा में स्थित है! यह शिखरबन्द विशाल देरासर जी 12वीं सदी का निर्मित है! यह मंदिर पूर्व में पार्श्वनाथ भगवान का था! इस मंदिर में निम्न प्रतिमाएँ स्थापित है:- श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा 23इंच ऊँची श्वेत पाषाण की है! परिकर की ऊँचाई 41इंच है! गर्भगृह से बाहर निकलते ही दाहिनी ओर कारनीश पर तीन चरण पादुका जी श्वेत पाषाण की वेदी पर प्रतिष्ठित है! बाहरी सभा मंडप से नीचे उतर कर बाईं ओर एक बड़ी देवरी में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा जी 31इंच श्याम पाषाण की प्रतिमाजी है! 2) श्री महावीरस्वामीजी का मंदिर (आयड़ तीर्थ) महावीर स्वामी का मंदिर मूल रूप से वर्तमान आयड तीर्थ परिसर से बाहर है! गुंबजनुमा इस मंदिर में महावीर स्वामी की 17 इंच ऊंची श्वेत पाषाण की प्रतिमा जी है! इस वेदी के नीचे 7 इंच ऊंची श्याम पाषाण की चंद्रप्रभस्वामी की , पद्मावती माता मय मस्तक पर पार्श्वनाथ भगवान व नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा है! इस पर कोई लेख व लांछन नहीं है! इसके साथ ही भैरव जी की प्रतिमा भी पृथक से विराजमान है!यह मंदिर एक वाडी (खेतीहर) में स्थित है! इस परिसर में महावीर स्वामी व चंद्रप्रभस्वामी की प्रतिमा जी भूमि से प्रकट हुई थी , जो करीब 2500 वर्ष प्राचीन है! इस मंदिर को श्री भेरुलाल जी दोशी ने बनवाया और प्रतिमा को संवत 1994 को आघाट नगर (खतरगच्छ) आयड में विराजमान करायी! यह मंदिर निजी मंदिर होने से विधि विधान द्वारा किसी श्रावक श्रेष्ठि द्वारा पूजा ना होने से आदेश्वर भगवान के मंदिर के पीछे अस्थायी मंदिर निर्माण करवाकर, महावीर भगवान की प्रतिमा स्थापित करायी गयी। इसको महावीर स्वामी का मंदिर कहा जाता है। 3) श्री शांतिनाथ भगवान का मंदिर आयड मंदिर परिसर में मुख्य सडक के किनारे पर यह मंदिर स्थित है! यह मंदिर अतिप्राचीन है व 12वी. सदी में इसका निर्माण हुआ था! मुलनायक श्री शांतिनाथ दादा की श्वेत पाषाण की प्रतिमा जी प्रतिष्ठित थी , जो अब पीछे महावीर स्वामी जिनालयजी में अस्थायी रुप से स्थापित की गयी है! इस पर कोई लेख नहीं है और परिकर भी 41इंच ऊँचा श्वेत पाषाण का है! गर्भगृह से बाहर निकलते समय दाहिनी ओर श्री सुमतिनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की सुन्दर प्रतिमा जी है! बाईं ओर श्री आदिनाथ प्रभु की श्वेत पाषाण की प्यारी सी प्रतिमाजी है! सभा मंडप से बाहर निकलते समय दोनों ओर देवरियाँ बनी हुई है! बाईं ओर की देवरी में :- नागराज की साधारण श्याम पाषाण की प्रतिमा है! इसके ऊपर पार्श्वनाथ प्रभु की 6इंच ऊँची प्रतिमाजी की सं 2058 में प्रतिष्ठा करायी गयी हैं! श्याम नागराज की लंबाई करीब 21 फीट है और मोटाई करीब 9इंच है! नाग पंचमी के दिन श्वेत नागराज करीब 12 फीट लंबे प्रगट होते हैं! मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिनी ओर देवरी में आचार्य श्री जगच्चन्द्रसूरिजी की 25इंच ऊँची श्वेत पाषाण की प्रतिमा जी है! 4) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान का देरासर जी:- इस देरासर मे प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा वि.सं. 1029 में आचार्य श्री यशोभद्र सूरिजी द्वारा की गयी हैं! उसको उत्थापित कर उसकी जगह पर शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की 41इंच ऊँची श्वेतपाषाण की प्रतिमाजी विराजित की गयी , जिसका परिकर 69इंच ऊँचा है! यह प्रतिमाजी अतिप्राचीन है व खनन से प्राप्त हुई है! खनन से प्राप्त प्रतिमाजी को तपागच्छधिपति जयघोषसूरिश्वर जी के शिष्य जितेन्द्रसूरिश्वरजी और कुलचन्द्रसूरिश्वर जी की निश्रा में प्रतिष्ठा वि.सं.2058 फाल्गुन कृष्णा 13 को सम्पन्न हुई! मूलनायक प्रतिमाजी का परिकर , दरवाजा स्वर्ण रेखा से रेखांकित होने से सुन्दरता बढ गयी हैं! There is an inscription that the idol of Bhagawan Aadeshwar was installed by Acharya Yashobhadrasurishvarji before the year 1029 of the Vikram era. There is a inscription that in the times of King Jaysinh in the 13th Century, all the canonical scriptures were got written on palm - leaves by Shri Hemchandracharya. The last renovation of this temple was accomplished in the year 1995 of the Vikram era. At the time of the renovation, the idol of the Bhagwan Aadeshwar was installed. Other Temples: There are four other temples. Three of them belong to the twelfth century. In one of the temples, there is very ancient idol of Ambica Devi In year 2002 All five Temples jirnodwar and Partistha was done under Nishra of Param Pujya Vairagyavaridhi Aacharya Shri KULCHANDRASURIJI Mahraj Saheb At time of Partistha Param pujya Gasthatipati Shri JAIGHOSHSURIJI Maharaja Pujya Aacharya Shri JITENDRASURUJI Maharaj saheb were also given Nishra. Works of art and Sculpture: Since all the temples are ancient, good craftsmanship is seen here.
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Morning: 5:30 AM - 11:30 AM
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Evening: 5:30 PM - 8:30 PM
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