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Shri Chintamani Parshvnath Jain Derasar, Sadri, District - Pali (Rajasthan)

Sadri, Pali, RAJASTHAN

Temple History

Shwetamber Jain Temple in Sadri, Pali विश्वविख्यात राणकपुर तीर्थ एवं प्राचीन तपोभूमि परशुराम महादेव की छत्रछाया में मध्यवर्ती अरावली के पश्चिमी छोर की तलहटी में तथा मधाई व सूकडी नदी के संगम पर बसी है गोडवाड की सिरमौर नगरी सादडी। सादडी का मूल संस्कृत नाम है ‘सह्याद्री’। अपभ्रंश होते-होते सादी, सादरी, सादडी बन गया। प्राचीनता : १२वीं शताब्दी के पूर्व यहां एक बडी ही रमणीय तालाब था-राणेश्वर तालाब और इसके साथ थी कुछ आदिवासी बस्तियां। मुख्य बस्ती का प्रारंभ बाडमेर से यहां आए कुछ नंदवाणा बोहरा ब्राह्मण परिवारों से हुआ। बाद में ओसियां से जैन परिवारों से इसका विस्तार हुआ। १७वीं शताब्दी में महाराणा प्रताप के चौथे वंशज महाराणा राजसिहंजी ने अपनी धर्मपुत्री झालीदेवी के विवाह में मारवाड नरेश महाराजा विजयसिंह को गोडवाड प्रदेश सहर्ष दहेज में दे दिया। महारानी झालीदेवी को सादडी का प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण एवं सुखी और समृद्ध जनजीवन मन में भा गया और उन्होंने यहां अपना निवास बनवाया तथा अपना अंतिम समय भी बिताया। महाराणा प्रताप ने भामाशाह के भाई श्री ताराचंदजी कावेडिया को उनकी वीरता, विश्वसनीयता, सैन्य कुशलता व प्रशासनिक योग्यता से प्रभावित होकर गोडवाड प्रदेश का ठाकुर (प्रशासक) नियुक्त किया था। इनका निवास स्थान सादडी में ही रहा। प्रशासन से सीधा संपर्क रहने के कारण इसे ‘धणीयों री सादडी’ के नाम से पहचान मिली। आर्थिक संपन्नता के कारण इसे ‘साहूकारों की सादडी’ नाम की प्रसिद्धि मिली एवं यहां के लोगों को ‘सादडी के साहूकार’ की पहचान मिली| सादडी कें जागेश्वर मंदिर के सं. ११४७ के शिलालेख से भी इसकी प्राचीनता प्रकट होती है तथा उस समय यहां राजा जोजलदेव का राज्य था। आज सादडी की आबादी दाणियों-झूपो सहित करीब ४० हजार की है। इसमें जैन समाज की जनसंख्या लगभग १६००० है। पूरे पाली जिले में पाली शहर के बाद जैन आबादी में सादडी का ही स्थान है। जैन धर्म के चारों पंथों के शासन प्रेमी यहां आपसी सदभाव से निवास करते हैं। मंदिरमार्गी एवं स्थानकवासी दोनों ही समुदायों के मंदिर, उपाश्रय एवं स्थानक धार्मिक प्रवृत्तियों के केंद्र रहे है| आज सादड़ी में छोटे-बडे १८ जैन मंदिर है। इनमें सबसे प्राचीन अर्द्धबावन जिनालय श्री चिंतामणी पाशर्वनाथ का है। श्री चिंतामणि पाशर्वनाथ : सादडी में जैनों का वर्चस्व बढता रहा, जिससे कई जैन मंदिरों का निर्माण हुआ। १२वीं शताब्दी में नगर के मध्य, रावले के पास व देहरो-वास में श्री चिंतामणि पाशर्वनाथ भगवान का भव्य कलात्मक शिखरबंध चौवीस जिनालय का निर्माण हुआ, जिसमें पाषाण की १४४ एवं धातु की ७८ मूर्तियां है। मूलनायक प्रतिमा पर संवत् १२२८ का लेख है। एक हाथ बडी बादामी पाषाण की यह प्राचीन प्रतिमा अति मनमोहक है। अनेक प्रतिमाएं संप्रतिकालीन है। भोयरा में प्राचीन धातु की कई प्रतिमाएं हैं। रंगमंडप की छत में अस्पष्ट सं. १७५२ वर्षे फागण वदि १ रविवार का लेख है। गुरु प्रतिमा अत्यंत आकर्षक है। जिस पर संवत् पढने में नहीं आता, मगर फा. वदि २ रवि दिन पढने में आता है। मंदिर के पीछे रावला में (जो जैन समाज की वास्तु है) २ खडे शिलालेख रखें है, जिसमें संवत् १२१… चैत्र वदि १ पढने में आता है संवत् १७५० में इस भव्य मंदिर का पहला जीर्णोद्धार हुआ व उसके बाद दूसरा सं. २०२१ में संपन्न हुआ। आ. श्री आनंदविमलसूरिजी ने १६वीं शताब्दी में सादडी में प्रतिष्ठा करवाई थी। नूतन आचार्य बने सुशीलसूरिजी का सं. २०२१ में चातुर्मास हुआ व आपश्री की निश्रा में स. २०२२ वै सु. ५ को, प्राचीन श्री चिंतामणि पाशर्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार बाद नूतन बनी हुई २४ देहरियों पर, १५१ प्राचीन जिनबिंबो की प्रतिष्ठा मंगल मुहूर्त में संपन्न हुई। आपश्री की निश्रा में पुन: सं. २०३५ में भी प्रतिष्ठा हुई। वै.सु. ५ को श्री ओटरमलजी सागरमलजी रांका परिवार ध्वजा चढाते हैं। कुछ और तथ्य : वि.स. १२७३, फा. व २, रवि को आ. श्री धर्मसिंहसूरि गुरुमूर्ति पर उत्कीर्ण लेख व अन्य ३ लेख संदर्भ : यतीद्रसूरि ग्रंथ इतिहास भाग में पृष्ठ न ३३ पर मार्गदर्शन : यह फालना रेलवे स्टे. से २७ कि.मी. और उदयपुर हवाई अड्डे से १३० कि.मी. दूर मुख्य सडक पर स्थित है। यातायात के सारे साधन उपलब्ध हैं। विश्व प्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ ९ कि.मी. दूर है

Temple Category

Shwetamber Temple

Temple Timings

Morning Hours

Morning: 5:30 AM - 11:30 AM

Evening Hours

Evening: 5:30 PM - 8:30 PM

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How to Reach

By Train

Train: Falna Railway Station

By Air

Air: Udaipur Airport (100 Km)

By Water

Sadri is one of the main places of worship for the Jain community

Location on Map

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