


Shri Digambar Jain Siddha Kshetra Muktagiri (Mendhagiri), District-Betul (Madhya Pradesh)
Muktagiri, Betul, MADHYA PRADESH
Temple History
सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरी जी इतिहास व चमत्कार: मुक्तागिरी जी यह एक सिद्धक्षेत्र है और भारत के मध्य में,महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है मुक्तागिरी जी मध्यप्रदेश के बैतुल जिले में आता है। सतपुडा पर्वत के श्रृखंलामें नयन मनोहर हरे - भरे वृक्षो के बीच यह क्षेत्र बसा हुआ है। यहाँ पर 250 फिट की उँचाई से जलधारा गिरती है। (Water Fall) जिससे जलप्रपात निर्मित हुआ है। निसर्ग के हरे - भरे दृश्य और पहाडो को देखकर मन प्रफुल्लीत हो जाता है। इतिहासः--- मुक्तागिरी सिद्धक्षेत्र का इतिहास काफी रोमहर्षक है। एलिचपूर(अचलपूर) स्थित स्व. दानशुर धर्माभिमानी श्रीमंत नत्थुसा पासुसा कळमकर इन्होने अपने साथी स्व. राय साहेब मोती संगई रूखबसंगई तथा स्व. गेंदालालजी हिरालालजी बडजात्या के साथ मिलकर अंग्रेजो के जमाने में श्री खापर्डेक मालगुजारीसे यह मुक्तागिरी पहाड मंदिरो के साथ 1928 में खरिदा था। उस समय शिकारी के लिए पहाड पर जुते चप्पल पहन कर जाते थे और जानवरों का शिकार करते थे। इसी वजह से, पवित्रता को ध्यान में रखते हुए यह पहाड खरीदा गया। उन्होने जैन समाज के लिये एक अविस्मरणीय कार्य किया है। सारा जैन समाज उनका ऋनी है। मुक्तागिरी(मेंढागिरी):- इस क्षेत्र पर दसवे तीर्थंकर भ. शीतलनाथ स्वामी जी का समोशरण आया था ऐसा निर्वाण कांड में उल्लेख है उस वक्त मोतीयों की वर्षा होने से इसे मुक्तागिरी कहा जाता है एक हजार वर्ष पुर्व मंदिर क्र. 10 के पास ध्यानमग्न मुनिराज के सामने एक मेंढा पहाड की चोटी पर से गिरा, मुनीराज ने उसके कान में णमोंकार मंत्र का उच्चारण किया, वह मेंढा मृत्यु के बाद स्वर्ग में देवगती को प्राप्त होते ही मुनि महाराज के दर्शन को आया। तब से हरअष्टमी -चौदस को केशर चंदन की वर्षा होती है। इसी समय से इसे मेंढागिरी भी कहा जाता है 52 जिन चैत्यालयः--- पहाड पर मानव निर्मित 52 जिन चैत्यालय है इन मंदिरो में कुछ अति प्राचिन है और शेष 16 वी शताब्दी के है। पहाड पर जाने के लिए 250 सिढियों का रास्ता है दुसरी ओर से उतरने के लिए दुसरी और 350 सिढियोंका रास्ता है चढने उतरने के लिए रोलिंग की व्यवस्था होने से आप आराम से वंदना कर सकते है। मुख्य मंदिर क्रमांक10: यह अतिप्राचिन अढाई हजार वर्ष पूर्व का गुफा मंदिर है। (पंचपरमेष्टी) जिसे मगध सम्राट श्रेणिक बिम्बासार ने निर्माण किया था। मंदिर क्रमांक २६(चित्र परिचय): मुलनायक भ. पार्श्वनाथ की 4 फिट उँची कालेपाषाण की सप्तफणी पद्मासन सातिशय मूर्ति विराजमान है ऐसा कहा जाता है की,अचलपूर में एक सरोवर के किनारे राजा श्रीपाल को स्वप्न में इन प्रतिमा के दर्शन हुए तथा उस स्थान से बहार निकालने का आदेश हुआ कालान्तर में वही प्रतिमा यहाँ विराजमान हुई। इसी मुर्ती की बाजू में एक सहस्त्रफणी भ. पार्श्वनाथ की अनोखी छोटी सी मुर्ती विराजमान है। जो 16 वी शताब्दी की है। यहाँ पर शाश्वत पूजन पंचामृत अभिषेक रोजाना सुबह 8.30 बजे होता है। "यहाँ पर सच्चे मनोभाव से की गई प्रार्थना पूर्ण होती है।" क्षेत्र विशेषः--- मुक्तागिरी सिद्धक्षेत्र इस लिए कहा जाता है, क्योंकी यहाँ पर मुनिश्वरों ने तथा महान साधकों ने विशेष आत्मसाधना कर,सर्व कर्म-बंधनो से मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त की साडे तीन करोड मुनिश्वरों की यह मोक्ष स्थली है तीर्थकर भ. शीतलनाथ स्वामी जी का समोशरण यहाँ आने से यह तीर्थ क्षेत्र भी है पवित्र आत्माओं के विचार तथा अभा मंडल द्वारा यह स्थल पवित्र तरंगो से भरा हुआ है। जिससे सबके मन के दूषित भाव बदलनेे लगते है। एक अनोखा आनंद प्राप्त होता है मन शांती से भर जाता है। यहाँ पर प.पु. आचार्य 108 श्री विद्यासागर महाराज जी का चातूर्मास सन् 1980,1990 तथा 1991 में हुआ था 1998 में उन्होने आचार्य विद्यासागर महाराज के पावन सानिध्य में 9 मुनीयोंको दिक्षा प्रदान की गई। उनके पावन पद कमल के आगमन से मुक्तागिरी दिन प्रतिदिन प्रगती पर है उन्ही के आशिर्वाद से जिर्णोद्धार की योजनाएं सफल हो रही है। तलहटी में भ. आदिनाथ मंदिर, भ. महावीर, तथा भ. बाहुबली मंदिर है मंदिर के निचे एक उँचा संगमरवर का मानस्तंभ है। जिस पर परस्पर विरोधी प्राणियों द्वारा अहिंसा तथा प्रेम के भाव दर्शाये गये है। अतिशय विशेषः- मंदिर क्र.10 एवं 26 के आसपास तथा पहाड पर "केशर चंदन की वर्षा हर अष्टमी चतुर्दशी, तथा पोर्णिमा को होती है।" जिसका अनुभव लेना एक अनोखा क्षण का अतिशय माना जाता है। निर्वाण क्षेत्र होते हुये भी अतिशयों से युक्त है
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Morning: 5:30 AM to Evening 8:30 PM
Evening Hours
Morning: 5:30 AM to Evening 8:30 PM
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