Shri Digamber Jain Atishaya Kshetra Papouraji, District-Tikamgarh (M.P.)
Papaura, Tikamgarh, MADHYA PRADESH
Temple History
टीकमगढ़ से ५ किलोमीटर दूर सागर टीकमगढ़ मार्ग पर पपौरा जी जैन तीर्थ है ,जो कि बहुत प्राचीन है और यहाँ १०८जैन मंदिर हैं जो कि सभी प्रकार के आकार मैं बने हुए जैसे रथ आकार और कमल आकार यहाँ कई सुन्द र भोंयरे है | पपौरा क्षेत्र के विशेष आकर्षण- इस क्षेत्र में मंदिर रचना शिल्प और कलात्मकता की दृष्टि से अदितीय है। पत्थरों पर खुदाई इतनी स्पस्ट है कि मनो कलाकारों ने पत्थर को मोम बनाकर सांचे में ढाल दिया हो।इन मंदिरों में खजुराहो कि तरहपाषाण प्रतिमाओं की कलात्मकता देखते ही बनती है। वास्तुकला का अद्भुत स्वरुप- पपौरा क्षेत्र पर जो चौबीसी बनी है वह भारत वर्ष मे अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। इसमें एक बड़े मंदिर के चारों ओर प्रत्येक दिशा में ६-६ मंदिर हैं। प्रत्येक वेदिका की अलग से परिक्रमा को चतुर्दिक झरोंखों के रूप मैं जिसतरह से निर्मित किया गया है, वह वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। प्राचीन भोंयरे- प्राचीन समुच्चय के समीप दो विशाल भोंयरे (भूगर्भ स्थित मंदिर) हैं, जिसमे संवत १२०२ की अत्यंत प्राचीनतम प्रतिमाएँ हैं जो देशी पाषाण से निर्मित होते हुए भी अपनी चमक ओर आकर्षण से ९०० वरस बाद भी मानव को आश्चर्यचकित कर देते हैं। भगवान पार्श्वनाथ की दुर्लभ प्रतिमा- दुर्लभ पद्मावती सयुक्त पार्श्वनाथ की अद्वतीय कलात्मक प्राचीन प्रतिमा जिसके चारों ओर चित्र बने हुए हैं अत्यंत मनोज्ञ है। इस प्रतिमा के सोंदर्य को देखकर भक्त आश्चर्य चकित रह जाते हैं। रथाकार मंदिर - यह मंदिर मुख्यद्वार पर बना हुआ है दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि भव्य रथ में जोते हुए घोडे तेजी से दोड़ते हुए जा रहे हों। वास्तव में यह मंदिर भक्ति से ओत -प्रोत मानवों को मुक्तिरमा से मिलाने के लिए रथाकार रूप में बनाया गया है। बाहुबली मंदिर - इस मंदिर का निर्माण कुछ समय पूर्व हुआ था। २२५ फीट के गोल घेरे में २४ खंभों पर गोल मंदिर है,जिसमे १८ फीट उत्तुंग श्री बाहुबली भगवान कि अत्यंत मनोज्ञप्रतिमा श्रवनबेलगोला स्थित बाहुबलीकि स्मृति दिलाती है। मूर्ति के चेहरे पर झलकता हुआ अनिध सोंदर्य अपरिमित शांति प्रदान करता है।भव्य आत्माएं इस प्रतिमा के दर्शन कर अपरिमित शांति का अनुभव करती हैं इसके चारों ओर चौबीसीस्थित है। बावडी का दान - क्षेत्र पर एक अत्यंत प्राचीन बावडी है जो पूर्व में सदैव ऊपर तक जल से भरी रहती थी,उस समय जब किसी यात्री को भोजन के लिए बर्तनों की जरूरत होती थी तो वह एक लिखित पर्चा बावडी में डाल देता था और बर्तन ऊपरआ जाते थे।ये बर्तन अत्यंत सुन्दर और चमकदार होते थे।जो लोग अत्यंत भरो से और भक्ति से जोभी कामना इस बावडी से करते हैं वह अवश्य ही पूरी होती है। पतराखन कुआं - यह घटना विक्रम संवत १८७२ की है एक वृद्धा माँ के द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। इस मांगलिक बेला पर अपर जनसमूह को प्रीतिभोज दिया जा रहा था।पानी की पूर्ति कुओं के ख़ाली हो जाने के कारण असंभव सा प्रतीत होने लगा। पानी के अभाव से लोग व्याकुल होने लगे और वृद्धा माँ के सम्बन्ध में अनर्गल बोलने लगे | वृद्धा माँ अत्यंत दुखी होकर रोने लगी | परन्तु तुंरत ही उसने प्रतिज्ञा ली की जब तक पानी की व्यवस्था नहीं हो जाती मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगी ऐसा कहकर वह कुँए की टलती में समाधी अवस्था में बैठ गई परन्तु कुछ ही समय में कुँए में पानी के अनेकों स्रोत फूट निकले और वह वृद्धा माँ उस पानी के साथ ऊपर आती गई | यहाँ तक की पानी कुँए से बाहर आ गया | उपस्थित जनसमूह द्वारा प्रार्थना करने पर ही पानी कुँए से निकलना बंद हुआ | तभी से यह कुआं पतराखन के नाम से जाना जाता है |
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Temple Timings
Morning Hours
Morning: 5:30 AM to Evening: 8:30 PM
Evening Hours
Morning: 5:30 AM to Evening: 8:30 PM
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How to Reach
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Train – Tikamgarh Railway Station
By Air
Airport: Khajuraho Airport
By Road
Road – Local transport is available at Tikamgarh for Papoura
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