






Shri Digamber Jain Mandir, Ramkundi, Nahan, District - Sirmaur (H.P.)
Nahan, Sirmaur, HIMACHAL PRADESH
Temple History
Digamber Jain Temple in Nahan, Sirmaur नाहन जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश का मुख्यालय है। स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व यह राजा सिरमौर की रियासत की राजधानी था। देश में यह राज्य विशुद्ध पर्यावरण, साफ-सफाई, घने जंगलों, नैसर्गिक सुन्दरता, सुशासन एवं जनहित के अनेक अनुकरणीय कार्यों के लिए विख्यात था। वहीं यहां के राजाओं की सर्वधर्म सम्भाव दृष्टि भी सराहनीय एवं अद्वितीय थी। सन् 1850 तक नाहन में कोई जैन धर्मावलम्बी नहीं था। नाहन के तत्कालीन राजा के निमंत्रण पर राजस्थान के फतेहपुर शेखावाटी (जिला सीकर) से लाला सरदारीमल जैन यहां घूमने के लिए पधारे तथा नाहन में ही व्यापार शुरू कर दिया। मूलत: लाला सरदारीमल के बुजुर्ग सेठ चौधरी तोहनमल हिसार के नवाब फतेखां के मुसाहिब बनकर सन् 1448 में हिसार से फतेहपुर आकर निवास करने लगे थे। लाला सरदारीमल जी के परिवार की आज नाहन में 10 पीढिय़ां हो चुकीं हैं तथा इस समय नाहन में जैनियों की आबादी तकरीबन 135 है। इसी परिवार के इतने ही लोग मुम्बई में व्यापार की दृष्टिï से निवास कर रहे हैं तथा 25 सदस्य कलकत्ता में भी रहते हैं। हिमाचल प्रदेश में 2001 की जनगणना के अनुसार जैनियों की कुल जनसंख्या 1408 है तथा दो दिगम्बर जैन मंदिर नाहन एवं शिमला में हैं। तीर्थंकर आदिनाथ जी की एक भव्य प्रतिमा भी कांगड़ा के प्राचीन किले में विराजमान है। सोलन जिला के नालागढ़ तथा हमीरपुर जिला के नादौन शहर में भी एक-एक जैन स्थानक है। नालागढ़ में जैनियों की संख्या 450 व नादौन में जैनियों की संख्या 175 के करीब है। अक्तूबर 1925 तक नाहन में कोई जैन मंदिर या चैतालय न था तथा उस समय तक नाहन में जैनियों की संख्या तकरीबन 100 थी। अत: यहां के भाइयों को धर्म साधना में किसी प्रकार की सहूलियत न थी। बल्कि ऐसे जैन भाई व रिश्तेदार जिन्होंने इस बात का नियम किया था कि बगैर भगवान के दर्शन के भोजन नहीं करेंगे, यहां आने की अभिलाषा रखते हुए भी यहां नहीं आ सकते थे। अक्तूबर 1925 में सौभाग्य से पारस नाथ जी भगवान की अष्ट धातु की छोटी प्रतिमा पर यहां के स्व. लाला हीरा लाल जैन को एक सनातन धर्म मंदिर में नजर पड़ी। यह मंदिर मियों का मंदिर या भगवान परशुराम जी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर से मिली यह प्रतिमा वीर निर्वाण सम्वत् 1502 व ईस्वी सन् 976 में निर्मित मानी जाती है। यहां के जैनियों की प्रार्थना पर यहां के राजा व सनातन धर्मी भाइयों ने इसको जैनियों के हवाले कर दिया। सन् 1927 में दो मंजिला मकान जैन मोहल्ले में मंदिर निर्माण के लिए 4225 रु. में खरीद लिया गया और मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। सन् 1938 में यह मंदिर बनकर पूरा हो गया था। इस मंदिर में दो प्रतिमाएं दिगम्बर जैन मंदिर सहारनपुर से लाई गयी थीं। संगमरमर के पत्थर की बनी पाश्र्वनाथ भगवान की प्रतिमा वीर संवत् 1548 (ईस्वी सन् 1022) की है जो साढोरा से लाई गई थी। उसकी प्रतिष्ठा जिन चन्द आचार्य देव संघ व जीव राज पापारावल के द्वारा हुई थी। जिन चन्द आचार्य पांडव पुराण के रचयिता शुभचन्द के शिष्य थे। दीवार पर अंकित भित्ति चित्र में राजा सौम श्रयांस द्वारा आदि तीर्थंकर श्री ऋषभ देव जी महाराज को आहार देते हुए दर्शाया गया है। इस दिगम्बर जैन मंदिर में यात्रियों के ठहरने के लिए एक छोटी-सी धर्मशाला भी बनाई गई है। इस मंदिर में विराजमान 1008 श्री चिन्तामणि पाश्र्वनाथ जी की प्रतिमा के दर्शन जो भी मन से करता है, इसको मनवांछित फल की प्राप्ति होती है, ऐसा आम विश्वास है।
Temple Category
Temple Timings
Morning Hours
Morning: 5:30 AM - 11:30 AM
Evening Hours
Evening: 5:30 PM - 8:30 PM
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