


Shri Gambhira Parshvnath Jain Shwetamber Mandir, Khadia, Dungarpur (Rajasthan)
Khadia, Dungarpur, RAJASTHAN
Temple History
Shwetamber Jain Temple in Khadia, Dungarpur श्री गम्भीरा पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर, डूंगरपुर तीर्थ- राजस्थान🙏 🙏यह शिखरबंद मंदिर डूंगरपुर शहर के पुराने मोहल्ले में घाटी पर स्थित है। मंदिर के द्वार पर यह मंदिर शालाशाह द्वारा निर्मित होने का समय सं. 1312 वीर सं. 1782 का लेख लिखा हुआ इस मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर का शिखर पारेना पत्थर से बना हुआ है। मंदिर के गर्भगृह रंगमण्डप में काँच की जड़ाई की हुई है। पारना 16 सोलह स्तम्भों पर भी काँच की जड़ाई का कार्य किया हुआ है। कलात्मक तोरण बने हुए हैं। 🙏डूंगरपुर राज्य के राजा (महारावल) गोपीनाथ व उसके पुत्र सोमदास (समय वि.सं. 1483 ) थे। उस समय शालाशाह जैन ओसवाल वंश के मंत्री थे। वे शूरवीर, कर्मवीर, दानवीर थे। शालाशाह के समय में जैन समुदाय के क़रीब सात सौ घर थे ।उन्हें मारने के पश्चात जैन समुदाय पलायन कर गया था ।उनके शासन काल में डुंगरिया नामक उदण्डी भील रहता था। आस-पास के प्रदेश उसके अधीन थे। 🙏डुंगरिया उदण्डी होने के कारण वह छोटे-मोटे उपद्रव किया करता था यहां तक शालाशाह की सुंदर कन्या से विवाह करने का प्रस्ताव कर दिया और शालाशाह के मना करने पर उसने जबरन ले जाने की घोषणा कर दी। ऐसे समय में शालाशाह ने विवेक के आधार पर दो माह का समय माँग कर महारावल की सहायता से डुंगरिया भील को मार दिया। मरणोपरांत उसकी दोनों पत्नियां धनी व काली सती हुई। जिसकी छतरिया आज भी पहाड़ी पर विद्यमान है। इस पहाड़ी को धन माता की पहाड़ी कहा जाता है। स्थानीय लोगों की भी यही मान्यत है डूंगरिया भील के नाम से डुंगरपुर बसा है। 🙏महारावल गोपीनाथ व सोमदास का गद्दीनशीन का समय वि.सं. 1483 से 1536 तक का था इनके समय काल की गणना से सं. 1312 में निर्मित होना मेल नहीं खाता । 🙏यह घटना महारावल वीरसिंहदेव के समय की है। महारावल वीरसिंह देव की गद्दीनशीनी का भी समय वि.सं. 1343-1344 माना गया है। यह समय भी मंदिर निर्माण के समय से मेल नहीं होता है अतः यह सम्भव है कि मंदिर शालाशाह के पूर्वजों ने बनवाया हो । 🙏बड़वों की ख्यात के आधार पर महारावल वीरसिंह देव का समय कहीं पर सं. 1315 कहीं 1335 कहीं 1359 का लिखा है। डूंगरिया भील को मार कर डूंगरपुर बसाया और राजधानी बनाई। वि.सं. 1415 में महारावल डूंगरसिंह तो वीरसिंह देव का पौत्र था। प्रायः राजा महाराजा अपने ही नाम से नगर की स्थापना करते थे जैसे उदयपुर, जयपुर, जोधपुर आदि। 🙏इसी प्रकार से यह सम्भव है कि डूंगरसिंह ने अपने नाम से डुंगरपुर नगर बसाकर राजधानी बनाई हो। यह भी स्पष्ट है बड़ौदा (वटपद्र ) की राजधानी वि.सं. 1359 तक होना निश्चित है। उसके बाद का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ख्यात को सही माने तो सं. 1312 का समय वीरदेव सिंह का समय उचित प्रतीत होता है। 🙏डूंगरपुर किसने बसाया कब बसाया यह विषय मेरे विषय सामग्री का नहीं हैं। मंदिर निर्माणकर्ता का नाम व समय को लेकर स्पष्ट किया है। शालाशाह की प्रसिद्धि व ख्याति के कारण स्व ग्राम में विशाल मंदिर का कार्य प्रारंभ किया लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने से पूर्ण नहीं हो सका। वर्तमान में वहां एक छोटा शिव मंदिर है। सूत्रों के अनुसार शालाराज ने जीर्णोद्धार कराया। सं. 1525 में शालाराज ने आंतरी में जैन मंदिर का निर्माण कराया शालाराज शालाशाह के वंशज है। अतः महारावल वीरसिंहदेव के समय में मंदिर निर्माण होकर प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। 🙏यह संभव है कि उस समय प्रचलन परम्परा के आधार पर ख्यात पर अधिक महत्व दिया जाता था और महारावल वीरदेवसिंह का 1315 बताया गया तो यह संभव है मंदिर का निर्माण वि.सं. 1312 में हुआ हो जो सत्य प्रतीत होता है। 🙏श्री मुनिसुव्रत भगवान की श्वेत पाषाण की 10" ऊँची प्रतिमा है। 🙏श्री संभवनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 14" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2040 का लेख है । 🙏श्री पार्श्वनाथ भगवान की श्वेत पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। 🙏श्री गौतम गणधर श्वेत पाषाण की प्रतिमा है। इस पर 2040 का लेख है। 🙏एक स्तम्भ पर सं. 1795 शिवसिंह विजयराजे का लेख है। 🙏श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 37" ऊँची प्रतिमा है। इस पर सं. 2040 का लेख है। (काउसग्गीय) 🙏श्री माणिभद्रयक्ष की श्वेत पाषाण की 15 ऊँची प्रतिमा है। 🙏श्री पद्मावती देवी की श्वेत पाषाण की 13" ऊँची प्रतिमा है। 🙏श्री नेमिनाथ भगवान की श्याम पाषाण की 17" ऊँची प्रतिमा है। 🙏मंदिर के बाहर निकलते समय बाई और श्री पार्श्वयक्ष की श्याम पाषाण की प्रतिमा है। यह प्रतिमा चमत्कारिक है। यह मुस्लिम बस्ती से घिरा हुआ है। कई वर्ष पूर्व इस प्रतिमा को कील लगाकर खुर्द-बुर्द करने का प्रयास किया। इस प्रकार का जघन्य व्यवहार किसने किया जाए करने पर ज्ञात हुआ कि दो परिवार के बालको द्वारा यह कृत्य किया गया वे सभी बालक गम्भीर रूप से बीमार हो गए और उनके घर की आर्थिक स्थिति में अचानक परिवर्तन (कमजोर) होने लगे जैनी औष्ठि ने उन्हें क्षमा मांगने की सलाह दी। ऐसा करने पर बालक भी स्वस्थ हुए औ व्यवसाय आदि में पुनः बढ़ोतरी होने लगी। तब से मुस्लिम समाज के सदस्य मंदिर रखवाली भी करते है और नमन करते है। 🙏इस घटना के बाद मंदिर को बाहर से जाली से बंद कर दिया है। 🙏इस मंदिर में पांच पट्ट श्री गिरनार, नाकोडा, शिखरजी, शत्रुजय व जैसलमेर तीर्थ के बने हुए है। मंदिर में एक भोयरा (तहखाना) है। यह भूतल के भीतरी भाग का मार्ग है जो महलों तक जाता है, ऐसा बतलाया गया है। महलों से महारानियाँ इसी मार्ग से आकर भगवान के दर्शन-वंदन करती थी। 🙏सौ वर्ष पहेले मंदिरजी मे 50 पाषाण की और 29 धातु की मुर्तीयाँ थी और क़रीब चार सौ जैन परिवार के घर थे । वर्तमान मे क़रीब सवा दो सौ घर है । 🙏इस मंदिर की 10 दुकाने है जो किराये पर दी गई है। मंदिर की वार्षिक ध्वजा कार्तिक सुदि 15 को चढ़ाई जाती इस मंदिर की देखरेख श्री जैन श्वेताम्बर बीसा पोरवाल सघ द्वारा की जाती है। 🙏सम्पर्क सूत्र : 👇 अध्यक्ष श्री हेमेन्द्र भाई मेहता- 9928542345 ट्रस्टी श्री मोहित जी मेहता-9413091291 श्री संजय जी मेहता 9414104805
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