Stavan
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Shri Manmohan Parshvnath Jain Shwetamber Mandir, Bali, District - Pali (Rajasthan)

Bali, Pali, RAJASTHAN

Temple History

Shwetamber Jain Temple in Bali, Pali श्री मनमोहन पाश्र्वनाथ मंदिर: गोड़वाड की मरुभूमि में विख्यात बालीनगर, जो कभी ‘वल्लभी नगरी’ के नाम से जाना जाता था, लगभग २००० साल प्राचीन है। इसके मुख्य बाजार में पाश्र्वनाथ चौक स्थित विशाल, कलाकृति में अद्भुत, सौधशिखरी जिनप्रासाद में अति ही सौम्य व प्रभावशाली श्री मनमोहन पाशर्वनाथ प्रभु की श्वेतवर्णी, पदमासनस्थ, डेढ़ हाथ बडी (७८ से.मी.) प्रतिमा स्थापित है। प्रभु प्रतिमा बाली से ३ कि.मी. दूर फालना सडक़ पर स्थित श्री सेलागांव के तालाब में से प्रकट हुई थी। प्रतिमा बडी ही चमत्कारी है। मंदिर की निर्माण शैली निराले ढंग की और अति सुंदर है। ऊंची कुर्सी पर भव्य शिखरवाला चैत्य है। प्रतिमा प्राप्ति की भी रोचक कथा है। कहते हैं कि लगभग २५० वर्ष पहले अधिष्ठायकदेव ने श्री गेमाजी श्रावक को स्वप्न में कहा कि सेलागांव के तालाब में पाशर्वप्रभु की प्राचीन चमत्कारी प्रतिमा है, जिसे यहां लाकर प्रतिष्ठित करो। स्वप्न के आधार पर तालाब की खुदाई होने पर प्रभु प्रतिमा व नवदुर्गा की नौ प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। प्रभु की प्रतिमा किसी गांव में मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठित रही होगी। संभावना है कि यवनों के आक्रमण के समय प्रतिमा को बचाने हेतु धरती में गाड़ दिया गया हो और वही प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई हो। प्रतिमा के प्राप्त होते ही सेला, बाली व अन्य गांवों के श्रावक वहां पहुंचे। सभी प्रतिमा को अपने यहां ले जाने की बात करने लगे। अंत में तय हुआ कि इस प्रतिमा को बैलगाडी में रख दो और बैल जहां भी प्रतिमा को ले जाएंगे, वहां प्रतिमा को प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा। बैलगाडी प्रभु प्रतिमा को लेकर बाली बाजार पहुँची और रूक गई। बहुत जोर लगाया गया, मगर गाडी आगे नहीं बढी। श्री संघ ने समझा कि शासनदेव की इच्छा इसी स्थान पर प्रतिमा को विराजमान करने की है। यह समझकर प्रतिमा को वहीं पर रखा गया। ओसवाल हथुंडिया राठौड़ कुलभूषण गेमाजी व ओटाजी दोनों भाइयों ने वि. स. १८२० में जिनमंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया। इन्हीं के वंशज गेमावत कहलाए, जो बाली, साण्डेराव व शिवगंज में मौजूद हैं और स्वयं को गेमाजी का वंशज बताते हैं। किसी किसी का यह भी कहना है कि बाली का किला और यह मंदिर समकालीन है। इसके प्रतिष्ठाकार संड़ेरकगच्छीय आ. श्री यशोभद्रसूरिजी महाराज हैं। प्रतिष्ठा के साथ ही बाली श्री संघ की बडी वृद्धि होती आ रही है। कालांतर में यह मंदिर जीर्ण- शीर्ण हो गया था। बाली के उपकारी गुरु लावण्य विजयजी की आज्ञा से मु.श्री वल्लभदत्तजी ने अपनी देखरेख में इसका जीर्णोद्वार कराया व श्री संघ ने आ. श्री सुशीलसूरिजी के कर कमलों से, इसकी प्रतिष्ठा वीर नि. सं. २५०५, वि. सं. २०३५, वैशाख सुदि ६ बुधवार दि. २ मई १९७९ को धूमधाम से संपन्न करवाई। ध्वजा का लाभ श्री पुखराजजी हजारीमलजी गेमावत एवं श्री लालचंदजी रामचंदजी गेमावत ने लिया। मंदिर में प्रतिष्ठित एक पाशर्वनाथजी की प्रतिमा वि. सं. १९५१,माघ सु. ५ गुरुवार को वरकाणा प्रतिष्ठोत्सव में भट्टारक आ. श्री राजसूरिजी के हाथों अंजनशाला प्राण प्रतिष्ठा की गई। दूसरी ओर आदेश्वर भगवान पाशर्वनाथ व गुरु प्रतिमा तथा अधिष्ठायकदेव प्रतिमा की प्रतिष्ठा वीर नि. स. २४७६, वि. सं,. २००७, ज्येष्ठ शुक्ल ५ सोमवार को वल्लभसूरिजी पट्टधर शिष्य श्री ललितसूरिजी के शिष्य सादडी रत्न पंडितरत्न पंन्यास पूर्णानंदविजयी गणि के हाथों हुई है। एक और श्यामवर्णी पाश्र्वनाथ प्रभु की प्रतिमा की अंजनशलाका आ. श्री वल्लभसूरिजी के हाथों वि. सं. २००६ के मगसर सुदि ६, शुक्रवार को बीजापुर के (मारवाड) प्रतिष्ठोत्सव में हुई है। वि. स. २०१४ में लावण्य पौषधशाला का श्री वल्लभदत्त वि. के उपदेश से निर्माण व वि. सं २०६२ मे इसका जीर्णोद्वार संपन्न हुआ।

Temple Category

Shwetamber Temple

Temple Timings

Morning Hours

Morning: 5:30 AM - 11:30 AM

Evening Hours

Evening: 5:30 PM - 8:30 PM

Plan Your Visit

How to Reach

By Train

Train: Falna Railway Station

By Air

Air: Udaipur Airport

By Road

The town is situated on the left bank of the Mithari River and is well connected with roads

Location on Map

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