Stavan
Stavan
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 1
1
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 2
2
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 3
3
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 4
4
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 5
5
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 6
6
Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan) image 7
7

Shri Sanderao Tirth, Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Sanderao, District - Pali (Rajasthan)

Sanderao, Pali, RAJASTHAN

Temple History

राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. १४ पर गोडवाड के प्रवेशद्वार फालना रेलवे स्टेशन से १२ कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिमी में निम्बेश्वर महादेव की पहाडियों में हेकजी पहाडी की तलहटी में बसा हुआ ‘सांडेराव’ गोडवाड का एक ऐतिहासिक नगर है, जिसे प्राचीन काल में संडेरा, संडेरक, षंडेरक, खंडेरक, वृषभनगर आदि नामों से जाना जाता था। राव सांडेजी द्वारा बसाया हुआ गांव होने से इसका नाम सांडेराव पडा। कभी यह विशाल नगरी के रूप में बसा हुआ था, जिसका प्रमाण यहां विद्यमान प्राचीन जैन तीर्थ शांतिनाथ भगवान का वह मंदिर है, जो देवविमान के समान आज भी शोभायमान है। अनुश्रुति के अनुसार काठियावाड से लौटते समय श्री यशोभद्रसूरिजी यहां के एक तालाब के किनारे रूके, जहां एक सिंह एवं सांड के युद्ध में सांड को विजयी देखकर उन्होंने इस स्थान का नाम ‘संडेराव’ रख दिया। आ. श्री सिद्धसेनसूरि ने अपने ‘सकल तीर्थ स्त्रोत’ में तीर्थ स्थानों की सूची में ‘संडेरा’ का नाम भी दिया है। यहां पर संडेरकगच्छ के महावीर और पार्श्वनाथ के दो जैन मंदिर थे। सन् १०९२ ई. के अभिलेख के अनुसार, इस कस्बे की गोष्ठी ने संडेरकगच्छ के मंदिर में जिनचंद्र के द्वारा एक मूर्ति की स्थापना करवाई। नाडोल के चौहान शासकों ने संडेरा में जैन धर्म की गतिवियों को संरक्षण दिया। संडेरक के श्रेष्ठि गुणपाल ने अपनी पुत्रियों के साथ महावीर जैन मंदिर में, १२वीं शताब्दी में एक चतुष्किका निर्मित करवाई। यह भी ज्ञात होता है कि पोरवाल जाति के पेथड के पूर्वज भोखू संडेरक के ही मूल निवासी थे और महावीर के अनन्य उपासक थे। पेथड और उसके ६ छोटे भाइयों ने संडेरक में दो जैन मंदिर बनवाए। यह तथ्य सन् १५१४ ई. लिखित ‘अनुयोगद्वारवृति सूत्रवृत्ति’ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है। (संदर्भ: मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म पृष्ठ क्र. २१५-२१६ से) डवों के वंशधर राजा गंधर्वसेन द्वारा निर्मित अत्यंत भव्य-दिव्य जिनालय गांव के मध्य, सूर्यवंशीय क्षत्रिय राजघराने के महल (रावला) से सटा हुआ है। अत्यंत विशाल एवं वास्तुकला से परिपूर्ण जिनालय का पूर्व काल में जीर्ण अवस्था होने पर, बार-बार जीर्णोद्धार होने व प्रतिष्ठाएं होने के प्रमाण मिलते हैं। इसी दौरान मंदिर के मूलनायक की प्रतिमाओं में भी बदलाव लाया गया है। कहा जाता है कि पूर्व में यहां, आदिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित थी और उसके बाद चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी और फिर पार्श्वनाथ प्रभु मूलनायक के रूप में रहे और अब इसमें कुमारपाल के समय की सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ प्रभु की पद्मासनस्थ, श्वेतवपूर्ण व लगभग ७५ सें.मी. की मनमोहक प्रतिमा, तोरण व प्राचीन कलात्मक परिकर सहित विराजमान है। भगवान शांतिनाथ के तीनों ओर नक्काशीयुक्त तोरण हैं, जिनकी अद्भुत शिल्पकला दर्शनीय है। यह मंदिर भूमि से छ: फूट नीचे निर्मित है। गंभारे के बाहर रंगमंडप में संप्रतिकालीन प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके अलावा एक आचार्य की कलात्मक प्रतिमा है, जिसकी पलाठी में नीचे सं. ११९७ (सन् ११४१) का इस प्रकार लेख है। ‘श्री षनडेरक गच्छे पंडित जिन चन्द्रेण गेष्ठियुतेन विजयदेव नागमूर्ति: कारिता मुक्तिवांछता संवत् ११९७ वैशाख वदि ३ थिरपाल : शुभंकर:।’ कहते है यह संडेरक गच्छीय आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी की प्रतिमा है। दसवीं शताब्दी में जिन्होंने विक्रम संवत् ९६९ यानि सन् ९१३ ई. में यहां मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी। विशिष्टता : कहा जाता है कि वि.सं. ९६९ में यहां पर हुए जीर्णोद्धार के समय प्रतिष्ठा महोत्सव पर, अनुमान से कई अधिक लोग महोत्सव में दर्शनार्थ पहुचें जिससे भोजन में घी समाप्त हो गया। इस बात की जानकारी आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी को होने पर, उन्होंने दैविक शक्ति से (विद्याबल या मंत्र शक्ति) पाली के व्यापारी ‘धनराजशाह’ के गोदाम से लाकर घी के पात्र भर दिये। प्रतिष्ठा के सभी कार्य संपन्न हो जाने पर आचार्यश्री ने श्रावकों से, घी का पैसा पाली के व्यापारी धनराज को दे आने के लिए कहा। जब सांडेराव के श्रावक पाली पहुँचकर घी के दाम देने लगे तो व्यापारी चकित हो गया और कहा कि मैंने आपको कोई घी नहीं बेचा तो दाम किस बात का लू? तब श्रावकों ने गोदाम चेक करने को कहा। व्यापारी ने गोदाम देखने पर घी के सारे पात्र खाली पाए। इस प्रकार आचार्यश्री के चमत्कार से प्रभावित पाली के धनराजशाह व्यापारी ने घी का पैसा लेने से इंकार करते हुए आग्रह किया कि प्रतिष्ठा में जो घी खर्च हुआ है, वह मेरी तरफ से समझ ले| मगर श्रावको के बार-बार आग्रह पर उसने उन रुपयों से पाली में भव्य ५२ जिनालय का निर्माण करवाया, जो आज भी १०८ पार्श्वनाथ में ‘नवलखा पार्श्वनाथ’ के नाम से विद्यमान है और अपनी गौरव गाथा का परिचय दे रहा है। नौ लाख रुपये से निर्मित होने से इसका नाम नवलखा पार्श्वनाथ पड़ा। संडेरक गच्छ : दसवीं शताब्दी में संडेरक नगर में इसकी स्थापना होने से इसका नाम ‘संडेरक गच्छ’ पडा। पूर्व मध्य काल उद्भुत में इस गच्छ का उल्लेख सन् १२११ ई. से १५३१ ई. तक के ३८ मूर्ति लेखों में भी मिलता है। इस गच्छ में वि.सं. ९६४ के लगभग अनेक प्रभावशाली आचार्य हुए, जैसे आ. श्री शांतिसूरि, शालिसूरि, सुमतिसूरि, आ.श्री ईश्वरसूरि व मांत्रिक, प्रकांड विद्वान आ. श्री यशोभद्रसूरिजी आदि हुए। आ. श्री यशोभद्रसूरिजी का जन्म सं. ९५७ में आचार्य पद सं. ९६८ में मुंडारा (राज.) में हुआ और सं. ९६९ में उम्र के १२वें वर्ष में आपश्री ने सांडेराव व मुंडारा में प्रतिष्ठा संपन्न करवाई। इस गच्छ में यशोभद्र, बलभद्र व क्षमार्षि ये आचार्य बडे प्रभावक हुए। इनके संबंध में संस्कृत भाषा में प्रबंध व लावण्यसमय रचित रास उपलब्ध है। १७वीं सदी तक के इस गच्छ के अभिलेख प्रकाशित हैं। इतिहासवेत्ता मु. श्री जिनविजयजी द्वारा प्रकाशित जैन पुस्तक ‘प्रशस्ति संग्रह’ की प्रशस्ति नं. ९१ के अनुसार इसका पूर्वनाम वालमगच्छ था।

Temple Category

Shwetamber Temple

Temple Timings

Morning Hours

Morning: 5:30 AM - 11:30 AM

Evening Hours

Evening: 5:30 PM - 8:30 PM

Plan Your Visit

How to Reach

By Train

Train: Falna Railway Station (13 km)

By Air

Air: Jodhpur Airport

Location on Map

Charity Event 1Charity Event 2Charity Event 3Charity Event 3

दान करे (Donate now)

हम पूजा, आरती, जीव दया, मंदिर निर्माण, एवं जरूरतमंदो को समय समय पर दान करते ह। आप हमसे जुड़कर इसका हिस्सा बन सकते ह।