Shri Shantinath Jain Shwetamber Mandir, Dadai, District - Pali (Rajasthan)
Dadai, Pali, RAJASTHAN
Temple History
Shwetamber Jain Temple in Dadai, Pali राजस्थान प्रांत के पाली जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 14 पर केनपुरा चौराहा से वाया रानी 22 कि.मी. रानी स्टेशन से 10 कि.मी. और वरकाणा तीर्थ से मात्र 5 कि.मी. दूर जोकर माता पहाड़ी की गोद में एक प्राचीन नगर बसा हुआ है ‘दादावसी’ अर्थात ‘दादाई’। करीब 500 वर्षो से सुकड़ी नदी के किनारे स्थित इस नगर में भव्य जिनालय के अतिरिक्त श्री जगदंबा माता (हिंगलाज माता) का प्राचीन देवालय प्रत्येक श्रद्धालु के लिये भक्ति भावना का प्रेरणा स्त्रोत है, जहां पिछले 200 वर्षों से लगातार अखंड ज्योति प्रज्जवलित है और प्रतिवर्ष चैत्य कृष्ण 5 को भव्य मेला आयोजित किया जाता है, जिसकी छटा देखते ही बनती है। अपार जनसमूह देवी दर्शन कर अपने आपको भाग्यशाली महसूस करता है। इसके अतिरिक्त गांव से एक कि.मी. उत्तर में, छोटी सी पहाड़ी (भाकरी) पर जोकर माता का मंदिर जन जन की आस्था का मुख्य केन्द्र है। कहते है कि इतिहास प्रसिद्ध महाराणा लाखा इसी देवी को अपनी इष्ट देवी मानते थे। सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी द्वारा सं. 2010 में प्र·ाशित ग्रंथ में, दादाई को लेकर दी गई जानकारी निम्नरूपेण है- ‘जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार (पेज नं. 403 व कोठा नं. 2703) श्री संघ दादाई ने मुख्य बाजार में शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण करवाकर मूलनायक श्री शांतिनाथजी को वि. सं. 1921 (वीर नि. सं. 2391, ई. सन् 1865) के लगभग प्रतिष्ठित करवाया। पूर्व में यहां 200 जैन, एक धर्मशाला, एक उपाश्रय थे तथा मंदिर की दीवारों पर प्राचीन चित्रकारी थी। आ. श्री यतिन्द्रसूरिजी द्वारा सं. 2001 में रचित पुस्तक ‘मेरी गोडवाड यात्रा’ के अनुसार, 70 वर्ष पूर्व दादावसी के जैन मंदिर में मूलनायक श्री शांतिनाथजी प्रतिष्ठित थे। एक धर्मशाला और ओसवाल जैनों के कुल 40 घर विद्यमान थे। श्री दादाई संघ से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस सुरम्य गांव के पुराने जिनालय में, प्रथम प्रतिष्ठा वीर नि. सं. 2405, शाके 1800, वि. सं. 1935 में और द्वितीय प्रतिष्ठा वीर नि. सं. 2460, शाके 1855, वि.सं. 1990, ई. सन् 1934 में, पू. शासक प्रभावक, पंजाब केसरी, युग दिवाकर आ. श्री वल्लभसूरिजी आ. ठा. की निश्रा में नाडोल के विख्यात यति महाराज श्री प्रताप रतनजी के करकमलों से संपन्न हुई। अतीत से वर्तमान : प्राचीन शिखरबद्ध मंदिर छोटा था, बाद में संघ के प्रयास से मंदिर के पीछे वाली जमीन क्रय करके इसे विशाल रूप प्रदान करने का निर्णय हुआ। वर्तमान जिनालय का निर्माण वि.सं. 2032-33 में प्रारंभ हुआ। सोनाणा आरस पत्थर से निर्मित, शिल्पकला की अनुपम कृति, देवविमान तुल्य, गगनचुंबी, ऊंची चौकी पर स्थापित 2 गजराजों से शोभित मुख्य प्रवेश द्वार, शिखरबद्ध कलात्मक जिन प्रासाद में प्राचीन, श्वेतवर्णी, 11 इंची, पद्मासनस्थ मूलनायक श्री 16 वें तीर्थंकर शांतिनाथ सह, श्री संभवनाथ व श्री धर्मनाथ आदि जिनबिंबों की प्रतिष्ठा, नूतन श्री शांतिनाथ, श्री आदिनाथ व श्री शीतलानाथ आदि जिनबिंबों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा, पू. आ. श्री वल्लभसूरिजी गुरूबिंब, यक्ष-यक्षिणी, अधिष्ठायक देव-देवी की प्रतिमाओं की स्थापना, वीर नि. सं. 2510, शाके 1905 व वि. सं. 2040, वैशाख वदि 5, शुक्रवार, दि. 20 अप्रैल 1984 को, प्रतिष्ठा शिरोमणि गोड़वाड जोजावर रत्न पू. आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी पट्टधर, ज्योतिष शिल्पज्ञ पू. आ. श्री पद्मसूरिजी आ. ठा. सह, चर्तुविध संघ की उपस्थिति में एकादशाह्निका महोत्सवपूर्वक खूब हर्षोल्लास से संपन्न हुई। इस अवसर पर, भागवती दीक्षा महोत्सव भी संपन्न हुआ। प्रतिवर्ष ध्वजा के लाभार्थी श्री वक्तावरमलजी चुन्नीलालजी रांका परिवार है। गंभारे में बायी तरफ प्राचीन संभवनाथ की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव पर भट्टारक श्री राजसूरीश्वरजी के करकमलों से हुई है और बाद में यहां प्रतिष्ठा हुई। समय निरंतर अपनी गति से दौड़ता रहा। इस बीच वल्लभ समुदायवर्ती पू. आ. श्री जनकचंद्रसूरीश्वरजी व पू. आ. श्री धर्मधूरंधरसूरिजी, आ. ठा. व नीतिसमुदायवर्ती सा. श्री स्व. सुशीलभक्तिश्रीजी की सुशिष्याओं का भव्य चातुर्मास संपन्न हुआ।
Temple Category
Temple Timings
Morning Hours
Morning: 5:30 AM - 11:30 AM
Evening Hours
Evening: 5:30 PM - 8:30 PM
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Train: Rani Railway Station
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Air: Udaipur Airport
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