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Jiya Kab Tak Uljhega

जिया कब तक उलझेगा | Jiya Kab Tak Uljhega

Rekha Trivedi

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Lyrics of Jiya Kab Tak Uljhega by Stavan.co

जिया कब तक उलझेगा,

संसार विकल्पों में

जिया कब तक उलझेगा,

संसार विकल्पों में

कितने भव बीत चुके,

संकल्प-विकल्पों में

जिया कब तक उलझेगा,

संसार विकल्पों में


उड़-उड़ कर यह चेतन,

गति-गति में जाता है

रागों में लिप्त सदा,

भाव-भाव दुःख पाता है

क्षण भर को भी न कभी,

निज आत्म ध्यानता है

निज तो न सुहाता है,

पर ही मन भाता है

यह जीवन बीत रहा,

झूठे संकल्पों में


निज आत्मस्वरूप तो लख,

तत्त्वों का कर निर्णय

मिथ्यात्व छूट जाए,

सम्यक प्रगटे सुखमय

निज परिणति रमण करे,

हो निश्चय रत्नत्रय

निर्वाण मिले निश्चय,

छूटे भावदुख भयमय

सुख ज्ञान अनंत मिले,

चिन्मय की कल्पों में


शुभ-अशुभ विभाव तज,

हैं हेय अरु आस्रव

संवर का साधन ले,

चेतन का कर अनुभव

शुद्धम् का चिंतन,

आनंद अतुल अनुभव

कर्मों की पगध्वनि का,

मिट जाएगा कलरव

तु सिद्ध स्वयं होगा,

पुरुषार्थ स्वकल्पों में


नर रे नर रे नर रे,

तु चेत अरे नर रे

क्यों मूढ़ विमूढ़ बना,

कैसा पागल खार रे

पर अवलंबन तज रे,

निज अक्षय कर रे

पर परिणति विमुख हुआ,

तो सुखपाल जल्पों में


तु कौन कहाँ का है,

अरु क्या है नांव अरे

आया है किस घर से,

जाना किस गांव अरे

सोचा न कभी तूने,

दो क्षण की छांव अरे

यह तन तो पुद्गल है,

दो दिन का ठांव अरे

तु चेतन द्रव्य सबल,

ले सुख अविकल्पों में


यदि अवसर चुका तो,

भव भव पछताएगा

फिर काल अनंत अरे,

दुख का धन छाएगा

यह नरभव कठिन महा,

किस गति में जाएगा

नरभव भी पाया तो,

जिनश्रुत नहीं पाएगा

अगिनत जन्मों में,

अगिनत कल्पों में

जिया कब तक उलझेगा,

संसार विकल्पों में

कितने भव बीत चुके,

संकल्प-विकल्पों में

जिया कब तक उलझेगा,

संसार विकल्पों में

© Red Ribbon Jain Bhajan

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