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Shri Guru Anand Chalisa

श्री गुरु आनंद चालीसा | Shri Guru Anand Chalisa

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Lyrics of Shri Guru Anand Chalisa by Stavan.co

प्रथम नमन अरिहंत सिद्ध को, द्वितीय नमूं आचार्य महान ।

धर्मसाथी धर्मध्वजा सम, धर्मरत्न का यह गुणगान ॥१॥


देवीचंदजी के कुलचंदन, हुलसा माता के थे लाल ।

आनंद ऋषिवर को पा करके, सारा भारत हुआ निहाल ॥२॥


महाराष्ट्र के चिंचौड़ी को था, मिला जन्म का ये सदभाग ।

सिरी जैसे छोटे ग्राम में, खेला था वीक्षा का फाग ॥३॥


तेरह वर्ष की लघु आयु में, नेमीचंद ने दीक्षा ली ।

रत्नकीर्ति के अनुशासन में, उनकी खूब परीक्षा ली ॥४॥


कषवेलेश को दूर करन हित, पांच महाव्रत किए स्वीकार ।

गुरुवर की आज्ञापालन का, ठान लिया था दृढ़ निर्धार ॥५॥


विनय विवेक के पालक गुरुवर, परमहंस सम हो तैयार ।

तप : पूत निष्कलुष निरंजन, बने मुक्ति के स्वयं ही द्वार ॥६॥


शास्त्र विशारद आगम ज्ञाता, संस्कृत प्राकृत ज्ञान अहा ।

सदभर्मों को सहज बताते, लिखा हुआ क्या और कहाँ ॥७॥


उर्दू, हिन्दी, महाराष्ट्रीयन, भाषाओं पर प्रभुत्व था ।

अभंग कविताएँ ग्रंथों का, खूब किया संग्रह भी था ॥८॥


मुदुभाषी हितमित शब्दों के, गुरुवर शुभव्यवहारी थे ।

योगी त्यागी गुण अनुरागी, वाचस्पति गुरु भारी थे ॥९॥


ज्ञान आराधक रहे सदा, नित करवाते अभ्यास अहा ।

पाठ सीखना शुद्ध फलता, आग्रह ऐसा सतत रहा ॥१०॥


अक्षर अक्षर में तन्मयता, सहज ध्यान के साधक थे ।

आगम वाचन की रुचि न्यारी, जिनशासन आराधक थे ॥११॥


अंतर्बाह्य शुचिभूत गुरुवर, तेज चमकता सूर्य समान ।

लाली मुखमंडल की लखकर, भक्त भूल जाते थे भान ॥१२॥


चरणकमल में शुभ लक्षण थे, हस्तकमल मखमल से थे ।

स्थिर आसन में माहिर थे, और तन-मन-वचन अविचल थे ॥१३॥


वर्तमान में जीने का ही, गुरुदेव का दिनक्रम था ।

शांतचित संयमी प्रभु का, औचित्य यह विक्रम था ॥१४॥


प्रभुभजन था ताल सुर में, छंद-व्याकरण सहित सदा ।

न्हस्व दीर्घ आदि की भूलें, गुरुवर से ना हुई कदा ॥१५॥


इर्यासमिति पालक गुरुवर, स्थल स्थलकर चलते थे ।

भाषा समिति का विवेक था, वचन सयोग्य निकलते थे ॥१६॥


अदीनवृत्ति रही हमेशा, परिषदों में डिगे नहीं ।

स्वाभिमान से भिक्षुक चर्या, प्रण था उनका अटल यही ॥१७॥


वस्तु विवेक स्वयं के खातिर, रखा आपने जीवनभर ।

स्वावलम्बी पुरुषार्थी बनकर, करो त्याग की सदा कदर ॥१८॥


ब्रह्मचर्य के दृढ़ संकल्पी, दृढ़ निश्चय शक्तिधारी ।

लेशमात्र भी हुए न विचलित, थे वे बाल ब्रह्मचारी ॥१९॥


चरणकमल अंकित जहाँ होते, लक्ष्मी वहाँ पर बची चढ़ी ।

अष्ट सिद्धियाँ गुरुचरणों में, विनीत भाव से रही खड़ी ॥२०॥


देव वंदना करने आते, मांगलिक सुन जाते थे ।

अर्धरात्रि में जागृत हो, गुरु मांगलिक फरमाते थे ॥२१॥


घने अंधेरे में पेड़ो की, आहट सुन पहचान करे ।

चमत्कार की प्रसिद्धि से, गुरुवर जीवनमे अलिप्त रहे ॥२२॥


मात्र समस्या कोई कहता, खुलकर के गुरुवर के पास ।

वही समस्या मिट जाती थी, लब्धि थी गुरुवर की खास ॥२३॥


तीर्थंकर के नाम की माला, जाप रूप में देते थे ।

सहज भाव से भक्तगणों की, व्याधि को हर लेते थे ॥२४॥


अमीठता आँखों से झरता, गैर कोई जो आ जाता ।

देख दिव्यता गुरुवर की वह, भक्त सहज ही हो जाता ॥२५॥


विविध संप्रदायों का मिलना, असंभव सा लगता था ।

दीर्घदृष्टि से कर दिखलाया, आप से ही हो सकता था ॥२६॥


सर्वेंक श्रमण संघ के गुरुवर, रक्षक थे दृढ़ व्रतधारी ।

अनुशासक अति गंभीर कविवर, समाचारी के अनुसारी ॥२७॥


ज्ञान विराग तथा श्रद्धा के, त्रिवेणी का संगम प्यारा ।

गुरुवर के पुरुषार्थ भाव से, हुआ संघ में उजियारा ॥२८॥


साधु-साध्वी श्रावकादि, शुभ, संघ चतुर्विध फलाफला ।

दीक्षाओं के आयोजन से, समृद्धि की ओर चला ॥२९॥


सर्व धर्म सहिष्णु गुरुवर, अनेकांत के पालक थे ।

वैर विरोध से दूर रहे वे, सच्चे संघ संचालक थे ॥३०॥


क्षमावीर थे आनंद गुरुवर, धीर स्थिर गंभीर रहे ।

शासक कुशल रहे जीवनभर, एक सूर में सब ही कहे ॥३१॥


अहमदनगर प्रतिष्ठा पाया, दादागुरु की स्मृति वहाँ ।

तिलोक कविवर का संघारा, समाधिपूर्वक हुआ जहाँ ॥३२॥


दादागुरु और रत्नगुरु का, भक्ति से शुभ नाम लिया ।

ज्ञानपीठ का सपना अपना, गुरुवर ने साकार किया ॥३३॥


भारतभर में कीर्ति आपकी, हृदय सिंहासन पर हैं आप ।

स्मरे आपको जो श्रद्धा से, धुल जाते हैं उसके पाप ॥३४॥


ॐ न्मीं श्री आनंद गुरुवे नमः जाप जो कोई करे ।

मनइच्छित हो सारी बातें, सारे संकट दूर हरे ॥३५॥


समाधि ये जो ध्यान करे, तो अनुभव अंतर में उतरे ।

क्रोध मान माया कम होवे, लोभ विजय से जीव तरे ॥३६॥


बोधि बीज के दाता गुरुवर, श्वेतांबर स्थानकवासी ।

सिखलाया जीवनभर सबको, पा जाओ पद अविनाशी ॥३७॥


करती है फरियाद ये धरती, कई युगों तक तपतप कर ।

तब मुश्किल से जनम हैं लेते, आनंद गुरुवर सम कविवर ॥३८॥


महाराष्ट्र के पुण्य प्रवर्तक, कुंदन कविवर का फरमान ।

साक्षी गीतिसुधा ने पाया, अपने पूज्य गुरुवर का गुणगान ॥३९॥


चालिसा आनंद गुरु का, पठन करेगा जो प्रतिदिन ।

जीवन उसका सफल बनेगा, पायेगा आशिष निशदिन ॥४०॥

© Stavan.co

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