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Manibhadra Veer Chalisa

मणिभद्र वीर चालीसा | Manibhadra Veer Chalisa

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Lyrics of Manibhadra Veer Chalisa by Stavan.co

जन्म हुआ उज्जैन नगर में,

मगरवाड़ा में स्वर्ग सिधारे

तपागच्छ आधिशायक देवा

श्रावकगण के ताज सितारे ॥


मस्तक पूजा उज्जैयिनी में

आगलोड़ में धड़ की पूजा

मगरवाड़ा पिंडी की पूजा

देखा ऐसा देव न दूजा ॥२॥


कलियुग में है जागृत स्वामी

संघ सकल के मंगलकारी

रोग - शोक हरते है सबका

जपते तुमको नित नर-नारी ॥३॥


श्यामवर्ण अजमुख मनोहारी

शीश-मुकुट तेजस्वीधारी।

विघ्न -निवारक अंतर्यामी

जिनवर के हैं आज्ञाकारी ॥४॥


त्रिभुवन में है तेज अनुपम,

मणिभद्र है! जन-हितकारी।

महामुनि धरते ध्यान तुम्हारा

महिमा देखी जग में भारी ॥५॥


तुम देवो के देव निराले,

वीर महाबली तारणहारे।

दुःख संकट हर्ता हो देवा,

जन-जन तेरा नाम पुकारे ॥६॥


बावन वीर तुम्हारे वश में,

चौंसठ योगिनी नाम उच्चरे।

जो मणिभद्र जपें नित हरदम,

उन सबको ये पार उतारे ॥७॥


समविततधारी विपत्ति-विनाशक

सहाय करो हे अंतर्यामी।

दुःख-दरिद्र निवारो देवा,

श्रावकगण के सच्चे स्वामी ॥८॥


जो कोई मन से ध्यान लगाते,

उनके सब संकट मिट जाते।

ऋद्धि-सिद्धिदाता सुखदायी,

सुमिरन करके सब सुख पाते ॥९॥


वन्या को तुम सन्तति देते,

निर्धन की झोली भर देते।

अंधों को तुम आंखे देकर,

हरा-भरा जीवन कर देते ॥१०॥


कोढ़ी का कर रोग निवारण,

कंचन सी काया कर देते।

भूखों को देते हो भोजन,

दुःखियों की पीड़ा हर लेते ॥११॥


भूत-प्रेत-भय शत्रु-विनाशक,

मणिभद्र है बटुकर धारी।

तुम ही संघ रक्षक रखवारे,

गुण गाती नित दुनिया सारी ॥१२॥


आधि-व्याधि हर्ता, सुखकर्ता,

डाकिनी-शाकिनी कष्ट निवारो।

निर्बल को बल देते स्वामी,

रक्षक बनकर पार उतारो ॥१३॥


कृपा आपकी हो जाये तो,

अकाल मृत्यु का त्रास न होगा।

अकाल की छाया न पड़ेगी,

महामारी उत्पात न होगा ॥१४॥


चोर लुटेरों का भय जग में,

कभी नहीं सन्ताप करेगा।

आगि का भय नहीं रहेगा,

मणिभद्र सब विघ्न हरेगा ॥१५॥


शक्तिशाली मणिभद्र हमारे,

सहज संघ के काम सुधारो।

कृपा करो हे अन्तर्यामी!

भव-सिन्धु से पार उतारो ॥१६॥


कार्य सिद्ध करते भक्तों के,

मन वांछित फल सबको देते।

देव हो सच्चे प्रकट प्रभावी,

आप शरण में सबको लेते ॥१७॥


तन-मन से जो सेवा करते,

पाप-पुंज उन सबको हरते।

कृपापात्र बनकर महाबली के,

निश्चित वे वैतरणी तरते ॥१८॥


सन्मति तुम देते जन-जन को,

मणिभद्र दाता!उपकारी।

सिद्धिदाता, भाग्यविधाता,

भविजन के साचे हितकारी ॥१९॥


खड़ग त्रिशूल सदा करधारी,

मुदगर अकुश नाग बिराजे।

घुमक चुमक पग झाझर बाजे,

कर में तोरे डमरू गाजे ॥२०॥


मणिभद्र की सेवा करके,

सर्व-देश का भय नहीं करता।

भक्तो तुम्हारा नहीं कदापि,

प्रकृति की बाधाएं सहता। ॥ २१॥


मणिभद्र जपे जो कोई,

घर में मंगल-मंगल होइ।

जिन का नहीं है अपना कोई

मणिभद्र सहायक होइ ॥ २२॥


मणिभद्र की कृपा रहेगी,

लक्ष्मी आ भण्डार भरेगी।

जीवन बगिया हरी रहेगी,

ऋद्धि अपना काम करेगी ॥ २३ ॥


मणिभद्र महाबली देवा!

संघ सकल मिल करता सेवा।

जो भरते थे भूख-प्यास से,

वो पाते अब सुमधुर सेवा ॥ २४ ॥


व्यंतर देव उपद्रव करते,

मणिभद्र बाधाएं हरते।

शत्रु वहां आने से डरते,

रक्षा वीर महावलि करते ॥ २५ ॥


मणिभद्र का स्मिरण करलो,

आंख फूटे तिजोरी भरलो।

पाप-पुंज सब अपने हरलो,

शनैः शनैः भवसागर तरलो ॥ २६ ॥


ईति-भीति व्यापे नहीं कोई,

मणिभद्र जो मन में होइ।

सम्पति जो होगी कहीं खोई,

आन मिलेगी सत्वर सोइ ॥ २७॥


काम-कुम्भ और कल्पवृक्ष है,

मणिभद्र का काम निराला।

कामधेनु अरु चिंतामणि है,

जीवन में कर देता उजाला ॥ २८॥


मणिभद्र का ध्यान लगाओ,

सपने में नित दर्शन पाओ।

'आगलोड़' 'उज्जयनी' जाओ,

मागरवाड़ा ज गुण-गुण गाओ ॥ २९॥


मणिभद्र जी कृष निवारे,

उत्पातो से नित्य उबरें।

भक्तो के नित काम सँवारे,

डूबती नैया पार उतारें ॥ ३०॥


मणिभद्र की भक्ति से ही,

मन की सब शंकाएं मिटती।

उनकी नित पूजा करने से,

विपत्तियाँ सारी ही कटती ॥ ३१॥


मणिभद्र के सुमिरन से ही,

मारग के कंटक हट जाते।

घुमड़ -घुमड़ जो उमड़ चले हो,

कष्टों के बादल छट जाते ॥ ३२॥


श्रद्धा जो रखते नर नारी,

जीवन में सुख वे पाते हैं।

संकट-मोचन मणिभद्र जी,

घर में मंगल बरसाते हैं ॥ ३३॥


हम भूले-भटके भक्तों को,

मणिभद्र जी! राह बताओ।

हम तो है किंकर चरणों के,

वांह पकड़कर हमें उठाओ ॥ ३४ ॥


तपाच्छ के अधिष्ठायक हो,

मेहर करो है समर्किनयारी।

हम चरणों की सेवा चाहें,

दर्शन दो स्वामी अविकारी ॥ ३५ ॥


मणिभद्र महाराजा देवा!,

सकल- सत्य की रक्षा करना।

मन -मंदिर में बसकर देवा,

नित भण्डार सभी के भरना ॥ ३६ ॥


रोज उतरे आरती देवा!

प्रत्यक्ष दर्शन हमको देना।

मेवा-मिठाई थाल चढ़ाये,

चरणों में अब हमको लेना ॥ ३७॥


मणिभद्र हम गिरे हुओं को,

दुर्विधाओं से आज बचाओ ।

आज शरण में लेलो हमको,

वीर महाबलि तस्कर आओ ॥ ३८ ॥


जागृत-ज्योति, महाबलि देवा,

संघ चतुर्विध विनती करता ।

आज अर्चना, पूजा करके,

पाप-पुंज सब अपने हरता ॥ ३९ ॥


॥ कलश ॥

हे महाबलि! वीर देवा!

शरण में अब लीजिए ।

हम तुम्हारे चरण-किंकर,

देव! रक्षा कीजिए ॥

मणिभद्र चालीसा जो गाये,

पूर्ण होगी कामना ।

नैन नहीं होगा कदापि,

उलझना से सामना ॥ ४० ॥

© Jainsite

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