नेमिनाथ चालीसा | Neminath Chalisa
Girnar | Stotra | Chalisa
Lyrics of Neminath Chalisa by Stavan.co
।। श्री नेमिनाथ चालीसा।।
नेमिनाथ महाराज का, चालीसा सुखकार।
मोक्ष प्राप्ति के लिए, कहूँ सुनो चितधार।।
चालीसा चालीस दिन, तक कहो चालीस बार।
बढ़े जगत सम्पत्ति सुमत, अनुपम शुद्ध विचार।।
।।चौपाई।।
जय-जय नेमिनाथ हितकारी,
नील वर्ण पूरण ब्रह्मचारी।
तुम हो बाईसवें तीर्थंकर,
शंख चिह्न सतधर्म दिवाकर।।
स्वर्ग समान द्वारिका नगरी,
शोभित हर्षित उत्तम सगरी।
नही कही चिंता आकुलता,
सुखी खुशी निशदिन सब जनता।।
समय-समय पर होती वस्तु,
सभी मगन मन मानुष जन्तु।
उच्योत्तम जिन भवन अनन्ता,
छाई जिन में वीतरागता।।
पूजा-पाठ करे सब आवें,
आतम शुद्ध भावना भावें।
करे गुणीजन शास्त्र सभाएँ,
श्रावक धर्म धार हरषायें।।
रहे परस्पर प्रेम भलाई,
साथ ही चाल शीलता आई।
समुद्रविजय की थी रजधानी,
नारी शिवादेवी पटरानी।।
छठ कार्तिक शुक्ला की आई,
सोलह स्वप्ने दिये दिखाई।
कहें राव सुन सपने सवेरे,
आये तीर्थंकर उर तेरे।।
सेवा में जो रही देवियां,
टहल करे माँ की दिन रतियाँ।
सुर दल आकर महिमा गाते,
तीनों वक्त रत्न बरसाते।।
मात शिवा के आँगन भरते,
साढ़े दस करोड़ नित गिरते।
पन्द्रह माह तक हुई लुटाई,
ले जा भर-भर लोग लुगाई।।
नौ माह बाद जन्म जब लीना,
बजे गगन खूब अनहद वीणा।
सुर चारों कायो के आये,
नाटक गायन नृत्य दिखाये।।
इंद्राणी माता ढिंग आई,
सिर पर पधराये जिनराई।
लेकर इंद्र चले हाथी पर,
पधराया पाण्डु शिला पर।।
भर-भर कलश सुरों ने दीने,
न्हवन नेमिनाथ के कीने।
इतना वहाँ सुरासुर आया,
गंधोदक का निशान पाया।।
रत्नजड़ित सम वस्त्राभूषण,
पहनाएँ इन्द्राणी जिन तन।
नगर द्वारका मात-पिता को,
आकर सौपें नेमिनाथ को।।
नाटक तांडव नृत्य दिखाएँ,
नौ भव प्रभुजी के दर्शाएँ।
बचपन गया जवानी आई,
जैनाचार्य दया मन भाई।।
कृष्ण भ्रात से बहुबलदायक,
बने नेमि गुण विद्या ज्ञायक।
श्रीकृष्ण थे जो नारायण,
तीन खण्ड का करते शासन।।
गिरिवर को जो कृष्ण उठाते,
इसकी वजह बहुत गर्माते।
नेमि भी झट उसे पकड़कर,
बहुत कृष्ण से ठाड़े ऊपर।।
बैठे नेमि नाग शय्या पर,
हर्षित शांत हुए सब विषधर।
वहाँ बैठे जब शंख बजाया,
दशों दिशा जग जन कम्पाया।।
चर्चा चली सभा के अन्दर,
यादववंशी कौन है वीरवर।
उठे नेमि यह बातें सुनकर,
उँगली में जंजीर डालकर।।
खेंचे इसे ये नेमि तेरा,
सीधा हाथ करे जो मेरा।
हम सबमें वो वीर कहावें,
पदवी राज बली की पावें।।
झुका न कोई हाथ सका था,
कृष्ण और बलराम थका था।
तबसे कृष्ण रहे चिन्तातुर,
मुझसे अधिक नेमि ताकतवर।।
कभी न राज्य लेले यह मेरा,
इसका करूँ प्रबन्ध अवेरा।
करवा नेमि शादी को राज़ी,
कोई रचूं दुर्घटना ताज़ी।।
दयावान यह नेमि कहाते,
सब जीवों पर करुणा लाते।
कैसा अब षड्यंत्र रचाऊँ,
नेमिनाथ को त्याग दिलाऊँ।।
उग्रसेन नृप जूनागढ़ के,
राजुल एक सुता थी जिनके।
चन्द्रमुखी, गुणवती, सुशीला,
सुन्दर कोमल बदन गठीला।।
उससे करी नेमि की मगनी,
परम योग्य यह साजन-सजनी।
जूनागढ़ नृप खुशी मनाई,
भेज द्वारका गयी सगाई।।
हीरे-मोती लाल जवाहर,
नानाविध पकवान मनोहर।
रत्नजड़ित सब वस्त्राभूषण,
भेजे सकल पदारथ मोहन।।
शुभ महूर्त में हुई सगाई,
भये प्रफुल्लित यादवराई।
की जो नारी नगर की धारी,
किये सुखी सब दुखी भिखारी।।
दिए किसी को रथ गज घोड़े,
दिए किसी को कंगन थोड़े।
दिए किसी को सुन्दर जोड़े,
दिन जब रहे विवाह के थोड़े।।
कीनी चलने की तैयारी,
आये सम्बन्धी न्यौतारी।
छप्पन करोड़ कुटुम्बी सारे,
और बाराती लाखों न्यारे।।
चले करमचारी सेवकगण,
छवि चढत की क्या हो वर्णन।
जब जूनागढ़ की हद आयी,
कृष्ण नगर में पहुँचे जायी।।
खेपाड़े में पशु भी आये,
भूख प्यास भय से चिल्लाये।
नेमि की बारात चढ़ी जब,
द्वारे पर आकर अटकी तब।।
चिल्लाहट पशुओं की सुनकर,
छाई दया दयालु दिल पर।
बोले बन्द किये क्यों इनको,
कभी न परदुख भाता मुझको।।
तुम बारातियों की दावत में,
देने को बांधे भोजन में।
सुन यह बात नेमि कम्पाये,
वस्त्राभूषण दूर हटाये।।
शादी अब में नही करूँगा,
जग को तज निज ध्यान धरूँगा।
जा पशुओं के बंधन खोलें,
पिता समुद्रविजय तब बोले।।
छोड़ो पशु अब धीरज धारो,
चलो ससुर के द्वार पधारो।
जगत पिताजी सब मतलब का,
मन सुख में कुछ ध्यान न पर का।।
खुद तो नित्यानन्द उठावें,
पर की जान भले ही जावें।
चाहत हमें दुखी करने का,
जब निज भाव सुखी रहने का।।
जैनवंश नरभव यह पाकर,
जन्म-जन्म पछताऊँ खोकर।
दो दिन की यह राजदुलारी,
तज कर वरु अचल शिवनारी।।
सभी तौर समझाकर हारे,
पर नेमि गिरनार सिधारे।
चाहे कहो भ्रात को धोखा,
चाहो कहो निमित्त अनोखा।।
चाहे कहो पशु कुल की रक्षा,
चाहे कहो यही थी इच्छा।
पिच्छी बगल कमण्डल लेकर,
जाते चार हाथ मग लखकर।।
महलों खड़ी देख यह राजुल,
गिरी मूर्च्छित होकर व्याकुल।
जब सखियों ने होश दिलाया,
माता ने यह वचन सुनाया।।
रंग-ढंग क्यों बिगड़े है तेरे,
फेर न उनके कोई फेरे।
पुत्री न चिन्ता व्यर्थ करो तुम,
खेलो, खाओ, जियो, हँसो तुम।।
करो दान सामायिक पूजा,
शादी करूँ देख वर दूजा।
सुनो मात यह बात हमारी,
मुनिराज एक समय उचारी।।
नौ भव के प्रेमी वह तेरे,
अब जग नाम तुम्हारा ठेरे।
सुरनगरी, शिवनगरी जाऊँ,
आप तिरु संसार तिराऊं।।
पूज्य गुरु के अटल वचन है,
तप वैराग्य भावना मन है।
माता-पिता सहेली सखियों,
मुझे भूल सब धीरज धरियों।।
नारी धरम नही यह छोडूं,
विषय भोग जग से मुख मोडूँ।
भूषण वसन निःशंक उतारकर,
धोती शुद्ध सफेद धारकर।।
पथिक बनी मैं भी उस पथ की,
प्रीति निभाऊँगी दस भव की।
आगे-पीछे दोनों जाते,
सुर नर पुष्प रत्न बरसाते।।
जूनागढ़ वासी हर्षाते,
महिमा त्याग रूप की गाते।
गई आर्यिका बनकर गिरी पर,
नेमि पास चढ़ सकी न ऊपर।।
तेरे दर्शन कारण प्रीति,
निजानन्द अनुभव रस पीती।
ध्यान आरूढ़ गुफा में रहती,
निर्भय नित्य नियम तप करती।।
कभी दूर नेमि के दर्शन,
कर गाती हर्षित गुणगायन।
कीने हितवन केवलज्ञानी,
समवशरण में फैली वाणी।।
समवशरण जिस नगरी जाता,
कोस चार सौ तक सुख आता।
चालीस हाथ आप अरिहर थे,
सेवा में ग्यारह गणधर थे।।
उम्र तीन सौ में ले दीक्षा,
वर्ष सात सौ थी जिन शिक्षा।
लाखों दुखिया पार लगाएं,
आयु सहस वर्ष शिव पाए।।
राजुल जीव राज सुर पाया,
तभी पूज्य गिरनार सहाया।
धर्म लाभ जो श्रावक पाए,
सुमत लगत मन हम भी जाएं।।
।।दोहा।।
नित चालिसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेये सुगन्ध सुसार, नेमिनाथ के सामने।।
होवें चित्त प्रसन्न, भय, चिंता शंका मिटे।
पाप होय सब अन्त, बल-विद्या-वैभव बढ़े।।
|| Doha ||
Neminath Maharaj ka,
Chalisa sukhakar.
Moksha prapti ke liye,
kahoon suno chitadhar.
Chalisa chalis din,
Tak kaho chalis baar.
Badhe jagat sampatti sumat,
Anupam shuddh vichar.
|| Chaupai ||
Jai-jai Neminath hitkari,
Neel varn puran brahmachari.
Tum ho baiswain teerthankar,
Shankh chihn satdharm divakar.
Swarg saman Dwarika nagari,
Shobhit harshit uttam sagari.
Nahi kahi chinta akulata,
Sukhi khushi nishadin sab janata.
Samay-samay par hoti vastu,
Sabhi magn man manus jantu.
Uchyottam jin bhavan ananta,
Chhayi jin mein veetragata.
Pooja-path kare sab aaven,
Aatam shuddh bhavana bhavein.
Kare gunijan shastra sabhaen,
Shravak dharm dhara harshayen.
Rahe paraspar prem bhalaai,
Saath hi chal sheelata aayi.
Samudravijay ki thi rajdhani,
Nari Shivadevi Patrani.
Chhati Kartik Shukla ki aayi,
Solah swapne diye dikhayi.
Kahein Raav sun sapne savere,
Aaye teerthankar ur tere.
Seva mein jo rahi deviyon,
Tahl kare Maa ki din ratiyan.
Sur dal aakar mahima gate,
Teen vakt ratna barsate.
Maat Shiva ke aangan bharte,
Sadh das karod nit girate.
Pandrah mah tak hui lootai,
Le jaa bhar-bhar log lugai.
Nau mah baad janm jab liya,
Baje gagan khoob anhad veena.
Sur charon kayo ke aaye,
Natak gaayan nritya dikhaye.
Indrani Maa dhing aayi,
Sir par padharaaye Jinarai.
Lekar Indra chale haathi par,
Padharaaya Paandu Shila par.
Bhar-bhar kalash suro ne dine,
Nhavan Neminath ke kiye.
Itna wahan surasur aaya,
Gandhodak ka nishan paya.
Ratnajadit sam vastrabhooshan,
Pehnaye Indrani Jin tan.
Nagar Dwarika Maat-Pita ko,
Aakar saupen Neminath ko.
Natak taandav nritya dikhaye,
Nau bhav prabhujee ke darshaye.
Bachpan gaya jawani aayi,
Jainacharya Daya man bhai.
Krishn bhrat se bahubaladayak,
Bane Nemi gun vidya gyanayak.
Shri Krishn the jo Narayan,
Teen khand ka karte shasan.
Girivar ko jo Krishn uthaate,
Iski wajah bahut garmate.
Nemi bhi jhat use pakadkar,
Bahut Krishn se thadhe upar.
Baithe Nemi Naag shaiyya par,
Harshit shaant huye sab vishadhar.
Wahan baithe jab Shankh bajaaya,
Dashon disha jag jan kampaaya.
Charcha chali sabha ke andar,
Yaadavvanshi kaun hai veer var.
Uthe Nemi yeh baatein sunkar,
Ungli mein jhanjheer daalkar.
Kheenche ise ye Nemi tera,
Seedha haath kare jo mera.
Hum sab mein vo veer kahavein,
Padvi raaj Bali ki paavein.
Jhuka na koi haath saka tha,
Krishn aur Balram thaka tha.
Tabse Krishn rahe chintatur,
Mujhse adhik Nemi takatvar.
Kabhi na rajya le le yeh mera,
Iska karun prabandh aavera.
Karva Nemi shaadi ko raazi,
Koi rachun durghatna taazi.
Dayawan yeh Nemi kehate,
Sab jivon par karuna laate.
Kaisa ab shadayantra rachaaun,
Neminath ko tyag dilaun.
Ugrasen nrip Junagarh ke,
Raju ek suta thi jinka.
Chandramukhi, Gunvati, Sushila,
Sundar komal badan gathila.
Usse kari Nemi ki mangni,
Param yogya yeh sajan-sajni.
Junagarh nrip khushi manaai,
Bhej Dwarika gayi sagaai.
Heere-moti laal javahar,
Nanavidh pakwan manohar.
Ratnajadit sab vastrabhooshan,
Bheje sakal padaarth mohan.
Shubh mahurat mein hui sagaai,
Bhaye phulit Yadavrai.
Ki jo nari nagar ki dhari,
Kiye sukhi sab dukhi bhikhari.
Diye kisi ko rath gaj ghode,
Diye kisi ko kangan thode.
Diye kisi ko sundar jode,
Din jab rahe vivah ke thode.
Keeni chalne ki taiyari,
Aaye sambandhi nyotari.
Chhappan karod kutumbi saare,
Aur baarati laakhon nyare.
Chale karmachari sevakgan,
Chhavi chadhat ki kya ho varnan.
Jab Junagarh ki had aayi,
Krishn nagar mein pahunchi jaayi.
Khepaade mein pashu bhi aaye,
Bhookh pyaas bhay se chillaye.
Nemi ki baaraat chadhi jab,
Dwaare par aakar atki tab.
Chillahat pashuon ki sunkar,
Chhaayi daya dayalu dil par.
Bole band kiye kyun inko,
Kabhi na paradukh bhaata mujhko.
Tum baaraatiyon ki daawat mein,
Dene ko baandhe bhojan mein.
Suna yeh baat Nemi kampaaye,
Vastrabhooshan door hataaye.
Shaadi ab mein nahin karunga,
Jag ko taj nij dhyaan dharon ga.
Jaa pashuon ke bandhan kholen,
Pita Samudravijay tab bole.
Chhodo pashu ab dheeraj dharo,
Chalo sasur ke dwar padhaaro.
Jagat pitaji sab matlab ka,
Man sukh mein kuch dhyaan na par ka.
Khud to nityanand uthaavein,
Par ki jaan bhaale hi jaavein.
Chahat hamein dukhi karne ka,
Jab nij bhaav sukhi rahne ka.
Jainvansh narbhav yeh paakar,
Janm-janm pachhataau khokar.
Do din ki yeh rajdulaari,
Taj kar varu achal Shivanari.
Sabhi tour samjhaakar haare,
Par Nemi Girnar sidhaare.
Chaahe kaho bhrat ko dhoka,
Chaho kaho yehi thi ichha.
Chaho kaho pashu kul ki raksha,
Chaho kaho yehi thi iccha.
Pichhi bagal kamandal lekar,
Jaate chaar haath mag lakhakar.
Mahalon khadi dekh yeh rajul,
Giri moorchhit hokar vyaakul.
Jab sakhiyon ne hosh dilaaya,
Maa ne yeh vachan sunaaya.
Rang-dhang kyun bigde hain tere,
Pher na unke koi phere.
Putri na chinta vyarth karo tum,
Khelo, khao, jio, haso tum.
Karo daan samaayik pooja,
Shaadi karun dekh var dooja.
Suno Maa yeh baat hamari,
Muniraj ek samay uchaari.
Nau bhav ke premi vo tere,
Ab jag naam tumhara there.
Sur nagari, Shiv nagari jaun,
Aap tiru sansaar tiraun.
Poojya guru ke atal vachan hai,
Tap vairagya bhavana man hai.
Maata-pita saheli sakhiyon,
Mujhe bhool sab dheeraj dhariyon.
Nari dharm nahi yeh chhodoon,
Vishay bhog jag se mukh modoon.
Bhooshan vasan nishank utaarkar,
Dhoti shuddh safed dhaarkar.
Pathik bani main bhi us path ki,
Preeti nibhaaoongi das bhav ki.
Aage peeche dono jaate,
Sur nar pushp ratna barsaate.
Junagarh vaasi harshaate,
Mahima tyag roop ki gaate.
Gayi Aryika ban kar giri par,
Nemi paas chadhi na upar.
Tere darshan kaaran preeti,
Nijanand anubhav ras peeti.
Dhyaan arudh gufa mein rahti,
Nirbhay nitya niyam tap karti.
Kabhi door Nemi ke darshan,
Kar gaati harshit gun gaayan.
Keene hitwan kevalgyaani,
Samavasharan mein phaili vaani.
Samavasharan jis nagari jaata,
Kos chaar sau tak sukh aata.
Chalis haath aap arihar the,
Seva mein gyarah Gandhar the.
Umra teen sau mein le diksha,
Varsh saat sau thi Jin shiksha.
Laakhon dukhiya paar lagaaye,
Aayu sahas varsh Shiv paaye.
Rajuul jeev raaj sur paaya,
Tabhi poojya Girnar sahaaya.
Dharm labh jo shravak paaye,
Sumat lagat man hum bhi jaaye.
|| Doha ||
Nitya chalisahin baar,
Path kare chalis din.
Khaye sugandh susaar,
Neminath ke saamne.
Hove chitt prasann, bhay,
Chinta shanka mite.
Paap hoye sab ant,
Bal-vidya-vaibhav badhe.
© Jinvani Channel
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