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Lidhu Kevalgyan Ho Veere

लिधु केवलज्ञान हो वीरे | Lidhu Kevalgyan Ho Veere

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Karunaveer Mahaveer | Stavan

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Lyrics of Lidhu Kevalgyan Ho Veere by Stavan.co

वैशाख सुदी दसमि दिने

अन्तिम ते दोहरे (2)

हस्त्तर नक्षत्र माहे

हस्त्तर नक्षत्र माहे

रुजुबाली किनारे

लिधु केवलज्ञान हो वीरे (5)

लिधु केवलज्ञान हो महावीरे


गोधोही का आस ने

साल वृक्ष नि जे वीरे

शम गुरहपति नक्षत्रए

समता रस रूपनिरे (2)

समता रस रूपनिरे

समता रस रूपनिरे

बरसो ने उपर वाडी उग्रो

गंत्रिस ओ त्यारे

छत हतो जे चोवीहारो

छत हतो जे चोवीहारो

वीजे दिन शुभवारे

लिधु केवलज्ञान हो वीरे (5)

लिधु केवलज्ञान हो महावीरे


श्रेणिक शपक ने शुक्ल ध्यानए

निर्मल भाव सहारे

मोह नीयन क्षय करीने

घाटी कर्मो निवारे (2)

घाटी कर्मो निवारे

घाटी कर्मो निवारे

त्रिकाल ने त्रिलोक गत जे

पावो अवधारे

त्रिकाल ने त्रिलोक गत जे

पावो अवधारे

ज्ञान जाने दर्शन जोमे

ज्ञान जाने दर्शन जोमे

सकार निराकारे

लिधु केवलज्ञान हो वीरे (5)

लिधु केवलज्ञान हो महावीरे


पामवा तुझ करुणा नजरने

आव्यो तारो द्वारे

मोह थी अजित करीने वीरजी

तारश मुझने क्यारे (2)

तारश मुझने क्यारे

तारश मुझने क्यारे

वैशाख सुदी दसमि दिने

अन्तिम ते दोहरे

वैशाख सुदी दसमि दिने

अन्तिम ते दोहरे

हस्त्तर नक्षत्र माहे

हस्त्तर नक्षत्र माहे

रुजुबाली किनारे

लिधु केवलज्ञान हो वीरे (5)

लिधु केवलज्ञान हो महावीरे

© Ajitshekharsuriji

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