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Siddhisuri Dada Sattavisa

सिद्धिसूरी दादा सत्ताविसा | Siddhisuri Dada Sattavisa

Prasham Samprati Parshwa

Stotra

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Lyrics of Siddhisuri Dada Sattavisa by Stavan.co

सिद्धिदायक सिद्धिगुरु को,

भाव से करू वंदना ।


सत्त्वसिद्धि शिरोमणी,

आध्यात्म योगिराज ।

सिद्धि सूरीश्वर बापजी,

शाशनना सिरताज ।


सरस्वतीनू स्मरण करी,

लागु गुरुवार पाय ।

गुरु सातविसा वर्णवु,

सदाय करजो सहाय ।।


सिद्धि सूरीश्वर नाम तुम्हारा,

कर दो बेड़ा पार हमारा!

तुम ही हमारे हो गुरु! ज्ञाता,

जिनशासन में तुम ही विख्याता || 1 ||


विक्रम संवत उन्नीस ग्यारह,

श्रावण सुद पूर्णिमा दिन सारा!

अहमदाबाद में जन्म तुम्हारा,

मनसुखलाल पिता का प्यारा || 2 ||


धन्य उजम बा माता तुम्हारी,

ऐसे प्रगट भए अवतारी!

षट भ्रात एक बहनी का भैया,

चुनीलाल तस नाम रखवैया || 3 ||


श्रावक कुल के आप दुलारे,

बालपन से ज्ञान के प्यारे!

माणेकचौक निवास तुम्हारा,

खेतरपाल का खांचा सारा || 4 ||


बाल्य जीवन में संत समाना,

पूजा दर्शन में मन माना!

वर्ष तेवीस तक रहे संसारी,

चतुर चंदना नौतम नारी || 5 ||


निशदिन मन में भक्ति भावे,

धर्मध्यान में मन लगावे!

वर्ष दोय घर वासा किना,

संयम मार्ग में मन भीना || 6 ||


गृह जीवन में मन नहीं माने,

करी बात निज नारी काने!

नारी चंदन चंदन सुगंधा,

छोड़ दिया संसार धंधा || 7 ||


उन्नीस चौतीस वर्ष विचारे,

ज्येष्ठ वदी बीज दिन सारे!

राजनगर में दीक्षा लीनी,

श्रावक जाति उज्ज्वल कीनी || 8 ||


शुद्ध संयम को रास्ता साध्यो,

गुरु कृपासु मार्ग लाध्यो!

सिद्धिविजयजी नाम धरावे,

भजन भक्ति विद्या मन भावे || 9 ||


साल उन्नीस सत्तावन सारी,

सूरत नगरी की बलिहारी!

आषाढ़ सुद एकादशी आवे,

सूरत पंन्यास गणि पद पावे || 10 ||


ध्यान जिनवर का निशदिन ध्यावे,

गाम गाम में ज्ञान सुनावे!

संवत उन्नीस पचहत्तर आया,

नगर महेसाणा भविक मन भाया || 11 ||


महा सुदी पंचम तिथि सारी,

ठाठ-माठ शुं करी तैयारी!

पूज्य आचार्य पदवी दीनी,

सकल संघ मिल शोभा लीनी || 12 ||


त्याग तपस्या तन में मन में,

निशदिन ध्यान धरे जीवन में!

बहुत जन उपकारी बंका,

जिनमत में बजवाया डंका || 13 ||


पंच महाव्रत के तुम धारक,

अधम जनों के आप उद्धारक!

धर्म धुरंधर निरंतर ध्यानी,

जय जय जय गुरुवर गुण ज्ञानी || 14 ||


सिद्धि सिद्धि जो नित मुख गावे,

रोग शोक अरु कष्ट मिटावे!

ध्यान धरे सिद्धि का जो कोई,

ते घर लक्ष्मी सदा सुख होई || 15 ||


ध्यान धरे सिद्धिसूरी को मन में,

तरत रोग मिटावे तन में!

लागे जस मन सिद्धि की लहरी,

गुरुगुण व्याख्या अतिशय गहरी || 16 ||


पावनकारी नाम तुम्हारा,

गुरु मुख बहती ज्ञान की धारा!

उठ निशा में नाम जो लेवे,

तो चित्त में चिंता नहीं रेवे || 17 ||


गाम गाम में गुरुवर गाजे,

अत्यंत उपकार किए गुरुराजे!

ऐंसी वर्ष शत उम्र थावे,

सिद्धाचल भेटणने जावे || 18 ||


नहीं डोली के नहीं सहारा,

अवधूत योगी चालणहारा!

पैदल चलकर सिद्धगिरि जावे,

आदिनाथ का दरिसन पावे || 19 ||


रायण पगले पहिला जावे,

वंदन करके कर्म खपावे!

नव टूक नव निधि आपे,

हेत हर्षसु रास्ता कापे || 20 ||


सिद्धगिरि का महिमा मोटा,

सभी तीर्थों में तीर्थ मोटा!

इन समो नहीं जग में जोटो,

भेट्यो नहीं ते मानव खोटो || 21 ||


वर्ष तेतीस वर्षीतप कीनो,

देशो-देश उपदेश बहु दीनो!

कायम जाप अजपा कीनो,

संयम मार्ग उज्जवल कर दीनो || 22 ||


तन से मन से रहे नित्य त्यागी,

लगन एक अरिहंत की लागी!

ऐसे योगी बड़े बड़भागी,

धन्य धन्य हो सिद्ध वैरागी || 23 ||


भारत वर्ष में रत्न समाना,

उच्च कोटि के संत मनमाना!

धर्म वीर गुरु आप अवतारी,

प्रगट भए गुरु पावनकारी || 24 ||


आयुष्य मान नित्य रहे निरोगी,

भक्ति भाव समर्पण के योगी!

वर्ष एक सौ पांच की उम्र,

घातिक काल लगाई धुम्मर || 25 ||


संवत बीस और पन्द्रा आवे,

सिद्धिसूरीश्वर स्वर्गे सिधावे!

भावे भजता वांछा पूरे,

नित्य जपंता दुःखड़ा चूरे || 26 ||


तीर्थ वालवोड/राजनगर में मूर्ति तुम्हारी,

आशा पूरो गुरुवर हमारी!

गुरु सत्तावीसा जो नर/नारी गावे,

फूलचंद अतुल फल पावे || 27 ||

© Stavan.co

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